सोने का नही जागने का प्रयास करना है।

हमारे उपनिषद यह स्पष्ट रूप से कहते हैं कि हम सभी दिव्यस्वरूप है और हम सभी के भीतर ब्रह्म है। लेकिन आप न तो अपने भीतर के ईश्वर अंश को अनुभव कर पाते हैं, और न ही आपके चारों तरफ हर चीज़ में मौजूद ईश्वर को देख पाते हैं। ईश्वर को देखने समझने की बात तो छोड़िये, आप तो जो सुंदरता, आनंद और रंग आपके जीवन और संसार मे चारों तरफ भरे पड़े हुए हैं उन्हें भी ठीक तरह से देख नही पाते हैं। क्योंकि उसके लिए आपको खुद को जगाना होता है। पर आप तो खुद को और अधिक सुलाने में प्रयासरत हैं। और अधिक सोने के उपाय खोजते फिर रहे हैं। हम वास्तव में उस परम आनंद और परमात्मा को ढूंढ ही कंहा रहे हैं।

इसलिये सबसे पहले आपको भीतर छुपी हुई सम्भावनायें, क्षमतायें, योग्यतायें, जो सामर्थ्य पहले से मौजूद है तथा जो ईश्वरीय अंश आपके हर श्वास में, आपके रक्त में 24 घण्टे घूम रहा है उसको अनुभव करना चाहिये और उसे जगाना चाहिये। हर रोज इन्हें जागृत करने का भरसक प्रयत्न करना चाहिये। दैनिक जीवन को विवेकपूर्ण बना कर आप ये कर सकते हैं। याद रखें संयमशीलता, सज्जनता, नियमितता, सहजता, सरलता तथा सुव्यवस्था से भरा पूरा जीवन जीने से ही आप ईश्वर प्रदत्त क्षमताओं का समुचित लाभ उठा पाते हैं।

आप सभी का दिन और जीवन यात्रा शुभ हो। आप सभी
आनंदित रहें, सुरक्षित रहें तथा स्वस्थ रहें, ऐसी प्रभु से मेरी प्रार्थना है। मंगल शुभकामनाएं। 💐💐

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