ईश्वर और प्रार्थना

ईश्वर प्रेम, पवित्रता और आनन्द के रूप में सभी के ह्रदय में मौजूद है। जब आप इनकी पराकाष्ठा अपने भीतर या बाहर अनुभव करने लगते हैं तो इसका एक मतलब है ईश्वरत्व का अनुभव करना। 👑

ईश्वर का शुष्क चिंतन करके आप सिर्फ खुद को मूर्ख बनाते रहते हैं क्योंकि यदि आपको अत्यधिक क्रोध आता है, जलन की भावना रहती है, स्वार्थ पूर्ति का लालच रहता हैं, अहंकार है तो आप ईश्वर और प्रार्थना दोनो को ही समझ नही पाए हैं अभी तक। क्योंकि ईश्वर तो सूर्य के समान हैं। यदि सूर्य आपके जीवन मे उदय हो गया हैं तो फिर कोई अंधकार कैसे रह सकता है। सोचियेगा जरूर 🙏

सच्ची प्रार्थना और ईश्वर के प्रति प्रेम का मतलब है – सभी कार्य, शब्द, विचार उंनको समर्पित कर दिया जाना। सभी से बगैर किसी अपेक्षा के प्रेम करना, उनका आदर करना। किसीसे भी नफरत नही करना। किसी का अनादर नही करना। संतुष्ट रहना। प्रेम, सहनशीलता, सादगी के साथ जीवन का निर्वाह करना। साधारण अर्थ में, प्रार्थना अपने अन्तःकरण में समाहित दिव्यता और सद्गुणों को चैतन्य करना है।

आपके जीवन में सक्रियता, चैतन्यता और उद्यमिता बनी रहे और आपके संचित कर्म हर बीते हुए दिन के साथ मजबूत होते चले जायें जिससे आपको भगवत कृपा और परम आनन्द की जल्द ही प्राप्ति हो सके, ऎसी मेरी ईश्वर से प्रार्थना है। मंगल शुभकामनाएं। 💐💐

Lord Hanuman Ji

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