देवता और असुर – असली मतलब!

देवता और असुर शायद मनुष्य की ही दो श्रेणीयां हैं।

देवता वे हैं जिन्हें अपने से ज्यादा दूसरों की प्रशंशा करने में अच्छा लगता है, दूसरों को प्रोत्साहित करने में आनन्द आता है, खुद की बजाये दूसरों पर फूल बरसाना अच्छा लगता है। जिनको खाने से ज्यादा खिलाना पसन्द है। जिनका मूल स्वभाव सात्विक है। जो दूसरों के विचारों, तर्कों, जरुरतों और उनकी परिस्थितियों को समझने के लिए उदारतापूर्वक प्रयत्न करते रहते हैं। जो मन में सबके लिए सद्भावनाएँ रखते हैं, संयमपूर्ण सच्चरित्रता के साथ समय व्यतीत करते हैं, भगवान का स्मरण करते हैं और अपने कर्तव्यों को जिम्मेदारी और ईमानदारी से अपनी पूरी बुद्धि और सामर्थ्य से निभाते रहते हैं।

और असुर वे हैं जिनको अपना स्वार्थ ही सर्वोपरि है। वे अपने लाभ के लिये दूसरों की बलि देने से भी कोई परहेज नही करते हैं। वे सदा अपने अहंकार में डूबे रहते हैं। वे न तो खुद चैन से जीते हैं न ही दूसरों को चैन से जीने देते हैं। शायद अपनी रुचि, इच्छा, मान्यता को हर हाल में दूसरे पर लादना, अपने गज से ही सबको नापना, अपनी ही बात को सदा ध्यान में रखना – मनवाना असुरता के चिन्ह हैं। जिनके मूल स्वभाव और व्यवहार में कृतघ्नता, छल, विश्वासघात, मलिनता और दुष्टता स्वभाविक रूप से शामिल रहती है, वे ही असुर हैं।

मेरा विश्वास कीजिये – आप मूल रूप से एक देवता हैं। आपका दुष्टता और पशुत्व से कोई सरोकार नही है। आप कोई भी नीच या औछा कार्य नही कर सकते हैं। आपको बेमतलब का अहंकार, घृणा, ईर्ष्या, क्रोध, द्वेष या कोई वैमनस्य भाव शोभा नही देता है। आपका कोई भी पग कुपथ पर या बुराई की और नही बढ़ सकता है।

आपके भीतर देवताओं के सभी गुण मौजूद हैं। एक बार फिर याद दिला दूँ – आप सदा से ही ईश्वरीय अंश हैं।

जाने अनजाने में आपके भीतर जो असुरता भर गई है या पैदा हो गयी है उसका ख़ातमा कर, अपने देवत्व को बढ़ावा देने का प्रयत्न करें, आप की जीवन यात्रा अवश्य ही शुभ तथा मंगलमय होगी।

मंगल शुभकामनाएं 💐💐

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