आत्माराम

असल मे तो राम और आत्मा में फासला शुरू से ही नही है, पर हम इस बात को देर से समझते हैं या शायद समझते ही नही हैं। हम ही तो आत्माराम हैं जिसमे दोनों हैं। आप और परमात्मा कभी भी अलग नहीं थे, जुदा नहीं थे – असल मे तो आपका होना ही परमात्मा का होना है।

मगर हम जीते जी उन्हें अपने भीतर – अपने अस्तित्व में ढूंढते ही कंहा हैं। क्योंकि अपने भीतर ढूंढने का एक ही उपाय है: अहंकार, झूठ, पाखंड और आडम्बर को खत्म करना। ये सब मिटे तो आप अपने भीतर जाओ। मूर्खता और अहंकार मिटे तो आप जान पाओ की आप असल मे कौन हो।

इसीलिये प्रार्थना परमात्मा को खोजने या प्राप्त करने की कोई कला नहीं है, ये तो स्वयं को खोने की विधि है – समर्पण की कला है।

आज स्वयं को बीते हुए कल की तुलना में थोड़ा बेहतर बनाने का प्रयास करना प्रार्थना है। ये भरोसा बनाये रखना की सारी विसंगतियों के बावजूद वे हमे मंगल दिशा में ही ले जा रहे हैं – प्रार्थना है। सुख हो कि दुख, हार हो कि जीत, प्रतिकूल हो कि अनुकूल, ईश्वर हमें हमारे मंगल की ओर लिए जा रहे हैं, यही विश्वास रखना प्रार्थना करना है।

मैं आज अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि हम सब के जीवन की सारी पीड़ा, सारा दुख, विषाद, मन का सारा बोझ और उदासी हमेशा हमेशा के लिये समाप्त कर दें जिससे कि हम आनंदित, प्रसन्नता और अहोभाव से भरे रह सकें और सफलता पूर्वक अपनी पूर्णता को प्राप्त कर सकें।

आप सभी को शतायु, स्वस्थ एवं सार्थक जीवन के लिये ढेरों ढेर मंगल शुभकामनाएं 💐

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: