प्रार्थना

अगर हम गौर से देखेंगे तो पायेंगे कि सब तरफ उत्सव ही उत्सव है, वसंत ही वसंत है। सब तरफ रंग है। ईश्वर हर हरे पत्ते की हरियाली में है और हर फूल के रंग में है। आप मे है और मुझ में भी है। ईश्वर ही तो जीवन है।

समस्या ईश्वर के होने या न होने की तो कभी थी ही नहीं… समस्या तो हमारे चयन की है, समझने की है, भटकन की है, मूढ़ता की है, मानने की है और मन की है। हमारे हजारों हज़ार मन हैं और वे बस घूमते ही रहते हैं। हमारा मन हर समय तरह तरह के छलावे रचने में व्यस्त रहता है, कोई न कोई स्वांग रचता ही रहता है। किसी न कीसी भरम में डाले ही रखता है। असल समस्या यही है कि हमारे स्वंय का मन हमे अपने जाल से निकलने ही नही देता। यह हमारा अपना मन है, न कि हमारा कोई शत्रु जो हमे सही बात को सोचने या करने से रोकता है, जो हमारी उलझनें बढाता जाता है।

और इसीलिए सम्भवतः हमारी प्रार्थना का एक अर्थ है – अपने मन को टटोलना, इसे काबू में करके, शान्ति से आत्मचिन्तन और आत्मावलोकन करना, बस। इतना ही हमारे लिए शायद पर्याप्त होगा, एक मायने में। और मेरे हिसाब से तो हमारे सब आवेग, चिड़चिड़ापन, संताप इसी से खत्म हो जाएंगे।

जो दीया कल तक बुझा हुआ सा लग रहा था, उसे आज प्रज्वलित कर – अपनी दिव्य (जीवन) ज्योति को प्रकट करने के प्रयास को प्रार्थना कहेंगे, आज के संदर्भ में।

मैं आज अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि आपकी वास्तविकता, समझ, आपकी आत्मा की उच्चतर शक्ति, सामर्थ्य, ऊर्जा तथा छिपा हुआ देवतत्व जल्द ही जागृत हो जाये तथा आपके भीतर जो परमात्मा का प्रकाश अब तक छुपा हुआ है वो जल्द ही अनवरत हो जाये और आपके घर-संसार को प्रकाशमान कर दे।

मेरी आज उनसे ये वीनती भी है कि आपके जीवन मे अम्रत, आनंद, माधुर्य और समृद्धि के रंगों की बारिश हमेशा होती रहे। मंगल शुभकामनाएं।।

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