Giving Yourself More Opportunities To Feel Proud..
आप अकेले थोड़े ही हैं जो सुख-शांति से जीना चाहते हैं। हर प्राणी यही चाहता है। मगर ज्यादातर लोगों को वो आनंद या सुख उसी संसार से चाहिये जो कि ज्यादातर स्वयं से या दूसरों से या किसी न किसी रूप से दुखी है।
असल मे हमारे आत्मिक सुख और हमारी शांति का मूल स्रोत है आत्मबोध और स्वयं में परमात्म अनुभूति। हमारी कोशिकायें केवल भीतर से उपजे आनंद को ही जानती हैं तथा उसी से असल मे आनंदित या सहज हो पाती हैं अन्यथा नही।
इसीलिए सब कुछ होने के बावजूद भी कुछ लोग अशांत, अस्थिर, उग्र, व्यग्र, दुखी, परेशान और तनावग्रस्त दिखायी देते हैं वंही दूसरी और कुछ लोग कम साधन-संसाधनों में भी अधिक सुखी और सन्तुष्ट दिखाई पड़ते हैं, शीतलता, दया, करुणा, स्नेह और प्रेम से लबालब भरे दिखाई पड़ते हैं।
इसका केवल और केवल एक ही कारण है की सुख शांति या आनंद कहीं बाहर खोजने या बाजार में मिलने वाली चीज़े नहीं है। ये हमारे अंदर ही हैं। इन सब के स्रोत को स्वंय में पहचानने, उनके परमत्त्व को भीतर अनुभव करने के प्रयास को ही शायद प्रार्थना कहते हैं।
सच मानिए – हमारे भीतर ही है उनका दिया गया दिव्य एवं चिरंतन आनंद स्रोत। कबीर साहब सही फ़रमाते हैं, ‘कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे़ वन माहि…’। हिरण के अंदर ही कस्तूरी होती है, लेकिन उसकी सुगंध उसे बाहर से आती प्रतीत होती है और वह उसे वन में ढूंढ़ता फिरता है। यही हमारी भी दशा है। दिन रात सुख शांति और परम् आनंद स्वरूप के लिये ईधर उधर चक्कर लगाते घूम रहे हैं, अपने भीतर ढूंढने की बजाये। भीतर ही भीतर अशांत और उदास रहते हैं। जीवन में एक खालीपन हर पल सताता रहता है और उसके सही कारण को पकड़ भी नहीं पाते हैं।
जब तक हमारे मन-बुद्धि ह्रदय का तार हमारी अंतरात्मा और भीतर बसे परमात्मा से जुड़ नही जाता है तब तक सभी कुछ मृगतृष्णा के समान है। एक बार ये तार जुड़ गया यानी के एक बार अंत:करण में उनके दर्शन कर लिये तो फिर अपने आप संयमयुक्त और विवेकपूर्ण जीवन जीने की कला आ जाती है। मन, वचन और कर्म से इंसान नेक व पवित्र बन जाता है, इसी पवित्रता से हमारा जीवन सुखमय हो जाता है तथा खुशियां और परम् आनंद स्वत: ही आते चले जाते हैं।
एक बात और याद रखने योग्य है कि आपके आनंद में ही आपके संसार के आनंद की चाबी भी छुपी हुई है। इसलिये हर समय आनंदित रह कर अपने संसार को सुखमय बनाये का प्रयास करना, हर कर्म के दौरान स्वंय को शांत और शीतल बनाये रखना, जीवन में सभी अलग-अलग दायित्वों को पूरी निष्ठा, जिम्मेदारी व ईमानदारी से निभाते हुए चेहरे पर मुस्कुराहट बनाये रखना और जल्दी-जल्दी हंसते रहना कदाचित सही मायनों में उनकी सच्ची प्रार्थना है।
मैं आज अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ की आपके चेहरे पर हंसी ख़ुशी बनी रहे तथा वाणी और व्यवहार से सदैव मीठा रस बरसता रहे। आपका आत्मबोध, आत्मिक आनंद और ख़ुशी न केवल आपको सृजनशील, संतुलित एवं सुखी रखे बल्कि दूसरों के जीवन, प्रवृत्ति और प्रकृति को भी शांत, संतुलित, सुखमय व हरा-भरा बनाने में प्रेरणादायक एवं सहायक सिद्ध हो।
मेरी उनसे ये भी प्रार्थना है कि आप उनके द्वारा निर्देशित मार्ग पर चलते हुये कई नई ऊंचाइयों को छुयें, अपनी आत्मिक शक्ति और दैव्य गुणों को विकसित कर पायें तथा बहुत जल्द ही पहले से अधिक स्वस्थ, सशक्त और समर्थ बन जायें। आपकी सारी शुभ मनोकामनायें जल्द ही पूरी हों। आपके जीवन और घर आंगन मे प्रेम, ताजगी, उमंग, उत्साह, नई उम्मीदें, सौंदर्य, गीत-संगीत, हर्षोल्लास और उत्सव सदैव बने रहें। मंगल शुभकामनाएं 🙏
श्री राम दूताय नम:। ॐ हं हनुमते नमः।