रविवारीय प्रार्थना – चित्त के भीतर यदि दोष भरा है तो वह गंगा-स्नान से शुद्ध नहीं होगा।

ईश्वर सदैव अपनी बनाई हुई सृष्टि से प्रेम करते हैं और उनकी अभिभावकीय उदारता की वजह से उनका आशीर्वाद समान रूप से किसी न किसी रूप में हम सभी तक पहुंचता भी रहता है।

लेकिन उनके सभी आशीर्वाद और सूत्र हमको केवल असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमरता के भाव की ओर ले जाने वाले होते हैं। वे सदा यही चाहते हैं कि हम मन, वचन और कर्म तीनों से अधिकाधिक पवित्र रहें, सन्तुलित रहे और हमारे सभी संकल्प शुभ हों। वे सदैव चाहते हैं की हम सद्भाव-सद्व्यवहार, कृतज्ञता के साथ जीवन जियें, जिससे चलते फिरते अमृतमय आनन्द को लूट पायें तथा अमरता, अनंतता, श्रेष्ठता, भगवदत्ता और उनकी कृपा सही मायनों में प्राप्त कर पायें।

मगर हम तो अपने दुर्गुणों को, दुर्बलताओं और दोषों को, दुर्विचारों औऱ दुर्भावनाओं को पोषित करने में तथा दुष्कर्मो को करने में लगे रहते हैं जिसकी वजह से उनकी असल कृपा के पात्र कभी बन ही नही पाते हैं।

हम सभी जानते हैं कि जो लोग स्वयं के स्वार्थ को पूरा करने के लिए दूसरों का अहित करते हैं, जो लोग दूसरों की वस्तु हड़पने या चुराने का प्रयास करते हैं, जो दूसरों को अपने शब्दों या कृत्यों से आहत करते हैं उनके जीवन के सभी पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं और उन लोगों को इस काम के अन्ततः भयंकर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। क्या हम नही जानते हैं कि हमारे शास्त्र क्या कहते हैं – जो व्यक्ति जैसा कर्म करेगा, उसे वैसा ही फल प्राप्त होगा? हम अच्छें काम करेंगे तो अच्छा फल मिलेगा और बुरे काम करेंगे तो बुरा फल मिलेगा ।

याद रखिये की चित्त के भीतर यदि दोष भरा है तो वह गंगा-स्नान से शुद्ध नहीं होगा। भीतर का भाव जब तक शुद्ध नही होगा, तब तक सब दान, यज्ञ, तप, तीर्थसेवन अतीर्थ ही बने रहेंगे। इसीलिए उनके उच्चस्तरीय अनुदान, कृपा एवं वरदानों की प्राप्ति के लिए हमे विवेक, कर्त्तव्य, सदाचरण और परमार्थ जैसी सत्प्रवृत्तियों और सद्‌भावनाओं से भरा हुआ ही जीवन जीना होगा अन्य कोई उपाय नही है।

अपनी दुर्भावनाओं, दुराग्रहों एवं समस्त कमजोरियों तथा अन्य उद्धत-उच्छृंखल मनोविकारों को ठुकराकर सज्जन, उदार, दयालु, करुणामय, आनंदमय एवं शांत हो जाना, अपने अनुचित घमंड की अधिकता को गलाकर समर्पण की नम्रता स्वीकार कर लेना तथा अपनी वाणी की अपेक्षा अपने सत्कर्मो के द्वारा अपने रचियता के प्रति कृतज्ञता का प्रदर्शन करना ही शायद उनकी असली प्रार्थना है।

सब मंगल कामनाओं को पूर्ण करने वाले मेरे आराध्य प्रभु से आज मेरी प्रार्थना है की आपके अंतस में समाहित शुभत्त्व, देवत्व व सद्गुण जल्द ही जग जायें तथा मन पवित्र और शांत हो जाये जिससे आपके जीवन और घर-आंगन में शुभता और मांगल्य की वर्षा सतत होने लगे।

आपके जीवन की शेष आयु के लिए तमाम तरह के अवसर, मधुरता, मस्ती, खुशियां एवं अच्छी सेहत की कामनाओं के साथ साथ मैं आज उनसे ये भी प्रार्थना करता हूँ कि आने वाला प्रत्येक नया दिन सुंदर, खुशहाल, मज़ेदार, रोमांचक और सबसे बढ़कर उत्पादक हो। मंगल शुभकामनाएं।।

श्री रामाय नमः। श्री राम दूताय नम:। ॐ हं हनुमते नमः।।

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