Giving Yourself More Opportunities To Feel Proud..
हम सब सदियों से और परम्परागत रूप से इस रहस्य को जानते हैं कि धरती के एक-एक कण में ईश्वर हैं। सृष्टि के सभी प्राणियों की अंतरात्मा उन्ही का एक अंश है।
जब प्रत्येक जीव के भीतर ईश्वर शुद्ध चेतना के रूप में प्रतिष्ठित हैं तो क्या कारण है कि हम उन्हें सब प्रकार के जतन कर के भी खोज नही पाते हैं, प्राप्त नही कर पाते हैं और सारा जीवन उनके होने की अनुभूति से भी वंचित रह जाते हैं।
मेरे अनुसार उसका एक कारण ये है कि वे कोई खोजने की चीज़ नही हैं। उन्हें तो प्रकट करना होता है स्वंय के भीतर से। दूसरा ये की हमारे व्यवहार में , विचारों में और कर्मों में अपूर्णता रहती है।
याद रखिये की जब फल तैयार हो जाता है तब वे खुद ब खुद उसके रस, स्वाद और सुगंध के रूप में प्रकट होने लगते हैं। उसी प्रकार जब हम पूर्णतः तैयार हो जाते हैं यानी के जब हम मन, वचन और कर्म से पवित्र और दिव्य हो जाते हैं, विनम्र और सदाचारी बन जाते हैं, निश्छल हो जाते हैं, जब जीवन में पूर्ण निर्दोषता आ जाती है तो वे खुद ब खुद आपके पास चले आते हैं, आपसे प्रकट होने लगते हैं।
उन्हें अपने आचार विचार, व्यवहार, भावना, वाणी और कर्म से प्रकट करने का प्रयास हमारा प्राथमिक लक्ष्य बन जाना ही हमारी सही मायने में प्रार्थना है।
संसार में अपने धर्म के अनुसार कर्तव्यों का ईमानदारी और जिम्मेदारी से निर्वाह करना, सादगी व नम्रता से उच्च स्तर का जीवन जीते हुए सरल बने रहना, दूसरों की खुशियों में खुश रहना और निरन्तर अपने ईष्ट देव और आराध्य के रूप में उनका चिंतन-मनन करते रहना ही हमारी प्रार्थना है।
मैं आज अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ की आपके जीवन की दैनिक क्रियाओं में अधिक से अधिक सज्जनता, पवित्रता और दिव्यता आ जाये, सकारात्मकता, सहजता और सरलता आ जाये जिससे आपको उन की कृपा-आशीष-अनुग्रह का अनुभव होने लगे।
आपके उत्तम स्वास्थ्य, प्रसन्नचित मनोदशा और समृद्ध जीवन की कामनाओं के साथ साथ मैं आज उनसे ये भी प्रार्थना करता हूँ कि जल्द ही आप अपने उच्चतम आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त कर लें। मंगल शुभकामनायें।