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हमारे वैदिक ग्रंथों में धर्म कर्म और ईश्वर के साथ साथ भारतीय राष्ट्र की अवधारणा और कल्याण की कामना भी कितने सुंदर शब्दों में की गयी है इसकी एक झलक देने के लिये मैंने आज एक वैदिक प्रार्थना का जिक्र किया है। राष्ट्र के कल्याण सम्बन्धी ऎसी अनेक प्रार्थनायें हमारे ग्रंथो में मौजूद हैं। वैदिक राष्ट्र चिन्तन का यह एक उदाहरण मात्र है।
आ ब्रह्यन् ब्राह्मणो बह्मवर्चसी जायताम्
शुक्ल यजुर्वेद ; अध्याय २२, मन्त्र २२
आ राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यः अति
व्याधी महारथो जायताम्
दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः
पुरंध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो
युवाअस्य यजमानस्य वीरो जायतां
निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु
फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्ताम्
योगक्षेमो नः कल्पताम्।।
यह प्रार्थना स्वस्ति मंगल के रूप में बड़े यज्ञों में गाई जाती है। इसमें राष्ट्र के विभिन्न वर्गों के सुख-समृद्धि की कामना की गयी है। यह वैदिक प्रार्थना हमारे लिये और इस विश्व के लिये आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस समय थी।
आज भी अत्यंत प्रासंगिक तथा उपयोगी हमारे महान ग्रंथ सहस्त्राब्दियों से हम सब को न सिर्फ धर्म कर्म बल्कि हमारी मातृभूमि तथा संस्कृति के गुणों और महत्त्व की प्रेरणा भी देते आए हैं।
सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण रखना, संभावनाओं और उपायों से परिपूर्ण रहना, अपने किये हुए कार्यों, विचारों और रवैये के प्रति जिम्मेदार बने रहना तथा स्वयं के उत्थान और आत्म-उत्कर्ष के साथ साथ अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के उन्नयन हेतु कार्यों में नि:स्वार्थ भाव से संलग्न रहना हम सबके लिये सर्वोच्च प्रार्थना होगी।
आज मैं अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि एक राष्ट्र के रूप में हमें ऐसी अजेय शक्ति प्रदान करें कि सारे विश्व मे हमे कोई न जीत सकें और ऐसी नम्रता प्रदान करें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो जाये।
आप हर प्रकार से सफल हों, आनंदित रहें, सुरक्षित रहें और स्वस्थ रहें, इन्ही कामनाओं के साथ साथ मैं आज उनसे ये भी प्रार्थना करता हूँ कि आपकी पूर्णता-श्रेष्ठता हासिल करने की, अपने आत्म- जागरण/ संवरण की यात्रा सरस, सुंदर, रसमय तथा सुखमय हो जाये और जल्द ही आप अपने उच्चतम आध्यात्मिक लक्ष्यों को प्राप्त कर लें। मंगल शुभकामनायें 💐
#HarGharTiranga