Giving Yourself More Opportunities To Feel Proud..
मेरे लिए – आपका और मेरा जीवन ही ईश्वर का पर्यायवाची है। ईश्वर न तो सिर्फ एक किताब है और न ही केवल कहीं दूर आकाश में बैठा हुआ है। वह फूलों में भी है, पत्तों में भी है, पहाड़ों में भी है, नदियों में भी है, लोगों की आँखों में भी है, इस जीवन में भी है। हमारा जीवन ही उसकी किताब है। मेरा ये भी मानना है कि यह सारा जगत उनकी दिव्यता से परिपूरित है। सृष्टि का कण-कण, रोआं-रोआं उनकी अपूर्व ऊर्जा से आपूरित है। यह ऊर्जा और दिव्यता समस्त नाम-रूपों में छिपी हुई है । इस धरती पर जो हमारा घर संसार है या जो भी जीव जंतु हमारे साथियों के रूप में हमारे साथ जी रहे हैं वो सब उस दिव्यता से पूर्ण हैं और ईश्वरीय उर्जा ही उन सबका भी केन्द्रबिन्दु है।
मगर सब मौजूद प्राणियों की स्थितियाँ-उस रचना-तन्त्र से विहीन हैं जिसकी सहायता से वे अपनी वास्तविकता यानी के अपनी ईश्वरीयता या दिव्यता का साक्षात्कार करने में सक्षम हो सकें या अपनी पूर्णता को हासिल कर सकें तथा जीवन के अपने उच्चतम लक्ष्यों को हासिल कर सकें। लेकिन हम ईश्वर से और इस ब्रह्मांड के साथ एकता का अनुभव करने में सक्षम हैं। आत्म-साक्षात्कार करने तथा आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक सभी साधनों और ज्ञान से सम्पन्न हैं। हम सब में चिन्तन करने, अनुभव करने तथा आत्म-साक्षात्कार के उच्चतम लक्ष्यों की ओर उन्मुख उद्देश्यपूर्ण कार्य करने की दुर्लभ क्षमताएँ मौजूद हैं।
अगर आप भी मेरी तरह से इस बात को मानते हैं या जानते हैं कि सच्चिदानन्द ही हमारा वास्तविक स्वरूपः है तब इस आन्तरिक दिव्यता, जो आपका स्त्रोत तथा उद्गम है के निरन्तर सम्पर्क में रहने का प्रयास ही तो हमारी प्रार्थना हुई। जो भगवदीय क्षमताएँ, सौन्दर्य और उत्कृष्टता आप मे पहले से ही मौजूद हैं उसका विस्तार और प्रसार करना ही तो प्रार्थना हुई। अपने प्रत्येकं क्षण और प्रत्येक श्वास का जागरूकतापूर्वक उपयोग करना ही तो प्रार्थना हुई। ईश्वर का निरन्तर धन्यवाद करना प्रार्थना हुई।
इसीलिये मुझे लगता है कि प्रार्थना का एक मतलब ये भी हुआ कि अपने मानवीय व्यक्तित्व को दिव्यता में पूर्णतः रूपान्तरित कर लेना, पूर्ण बोध तथा ज्ञान के साथ अध्यात्म-पथ पर चलना और दैनिक जीवन को ईश्वर-परायण बना लेना।
महान् वैदिक पुरातन प्रार्थना “तमसो मा ज्योतिर्गमय” जिसका मतलब है – “मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाओ” में हमारी समस्त आकांक्षाओं और प्रार्थनाओं का सार हैं। प्रकाश की ओर अग्रसर होना तथा अन्धकार से दूर होने की यह आकांक्षा अनवरत रूप से बनी रहना ही हमारी सर्वोच्च प्रार्थना है। हमारे जीवन का सही मायनों में अर्थ है सर्वप्रकार के अन्धकारो का अतिक्रमण करना।
जो भी महान गृन्थों और कथा – कहानियों में सुना पढ़ा को आप तक पहुंचाने के पीछे मेरा उद्देश्य केवल इतना है कि आप अधिक दृढ़-निश्चय के साथ इश्वरोन्मुख हो जायें और आपकी प्रवृत्ति ईश्वरमयी हो जाये। इन विचारों से, शब्दों से और लेखों से आप लाभान्वित हों और आपका जीवन दिव्य जीवन बन जायें। इसके अतिरिक्त अन्य कुछ नही।
जो समस्त अन्धकारों से परे प्रकाशों के प्रकाश के रूप में आपके
हृदय के अन्तरतम में देदीप्यमान हैं उन से प्रार्थना है कि आपको अपने मार्ग को स्पष्ट रूप से देख सकने में समर्थ कर दें, अपने पथ पर टृढ़तापूर्वक अग्रसर होने के योग्य कर दें और आप के पथ को सदैव आलोकित रखें जिससे आप कभी भी क्षण मात्र के लिए भी अपने पथ से नहीं भटकें तथा अपने सभी देदीप्यमान लक्ष्यों को जल्द ही प्राप्त कर लें।
आपको सब कुछ प्राप्त हो – चिरस्थायी प्रसन्नता एवं सन्तोष, शान्तिपूर्ण तथा प्रशान्त परमानन्द की स्थिति, प्रकाश, शक्ति, परज्ञा तथा भगवान् की प्रचुर कृपा, इस मंगलकामना के साथ साथ मैं आज अपने आराध्य प्रभु जी से ये भी प्रार्थना करता हूँ कि आपकी आत्मिक प्रगति तेज गति से हो और आपको लौकिक एवं पारलौकिक अनुकूलताएँ सहज ही प्राप्त हों जायें। मंगल शुभकामनाएं 🙏
श्री रामाय नमः। श्री राम दूताय नम:। ॐ हं हनुमते नमः।।