Giving Yourself More Opportunities To Feel Proud..
माना कि आप सम्पूर्ण ब्रह्मांड के साथ एकरस नही हो सकते हैं, ये भी माना कि आपका चित्त परम शांति को उपलब्ध नही हो पाता है, माना की आपकी कुण्डलनी जाग्रत नही हो पाती है या की आपको अपनी अलौकिक शक्ति एवं ऊर्जा का पता नही चलता है। ये भी माना कि आपको इस बात का सही ज्ञान नही हो पाता है कि ईश्वर असल में कंहा है और उन्हें पाने, अनुभव करने और प्रकट करने के लिये कैसे जतन करने हैं या कौन सी प्रार्थना करनी है। ये भी माना कि आप दुनिया मे कोई बड़ी क्रान्ति नही ला सकते हैं तथा ये भी माना कि आपका जीवन विश्व इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक नही हो पायेगा।
पर प्रिय आप अपने व्यर्थ के वाद-विवाद, कटाक्ष करना, क्रोध, घृणा, अभद्रता, दूसरों का अपमान करना और उनको अपने से नीचे समझना तो बंद कर ही सकते हैं। जो भी जैसे भी बन पड़े कुछ पल सच्चे मन से उस ईश्वर का विचार तो कर ही सकते हैं, उनका नाम सिमरन तो कर ही सकते हैं जिसकी कृपा से हमें यह जीवन मिला है।
मुझे नही पता कि आप क्या कर गुजरने का सामर्थ्य रखते हैं, पर ये जरूर पता है कि अगर आप अपना हर कार्य अपने पूरे शरीर, मन व आत्मा के साथ करते हैं तो उस कार्य की गुणवत्ता का एक अलग ही आयाम होता है और देर सबेर मनोवांछित परिणाम भी प्राप्त होते ही हैं।
माना कि जैसा आचरण हमारे पवित्र ग्रंथों में लिखा गया है या हमसे अपेक्षित है वो इस युग मे हमसे नही हो पायेगा। परन्तु वो कार्य जो हमे पहले से बेहतर बनाये, पवित्र बनाये, जो हमे आनंद व संतुष्टि का भाव दे उसे तो बार-बार कर ही सकते हैं और उसे अपना आचरण बना सकते हैं। इसमें क्या मुश्किल है।
माना कि हम इस सृष्टि के स्वामी को तो उपलब्ध नही हो पाते हैं लेकिन ये क्या की हमारे विचार, हमारे वार्तालाप (स्वंय से और दूसरों से), हमारी सोच और व्यवहार हमे अपने व्यक्तित्व के सर्वोच्च को भी उपलब्ध नही होने देता। ये भला कोई बात हुई?
चलो ये भी माना की इस दुनियां में कोई भी पूर्णतः निर्दोष नहीं हो सकता हैं, पर अपनी गलतियों के लिये माफी तो मांग ही सकतें हैं तथा दूसरों की गलतियों के लिये उन्हें माफ तो कर ही सकते हैं, थोड़ा छोटा बनकर कुछ रिश्ते तो निभा ही सकते हैं। इसमें कौन सी बड़ी बात है?
हम सभी का जीवन पहले से बहुत सीमित व संकुचित है, इसे अपनी कुंठाओं, अपने कलह क्लेश से, अपनी कमजोर बातें और निम्न स्तर के आचरण से और अधिक दोषयुक्त, अपूर्ण तथा असन्तोषजनक न बनाये। अच्छे काम भले ही कम हो पायें लेकिन अनैतिक और नीच कार्य करने से तो बच ही सकते हैं।
हम सब अपने दैनिक जीवन मे प्रेम, आनंद, आत्मीयता, अनुरूपता, स्नेह, सौहाद्र, सदभाव, समरसता का भाव बनाये रख सकते हैं। संसार में व्याप्त बुराईयों के बीच में सब के कुछ अच्छे गुणों को देख सकते हो, उनके बारे में अच्छा कह सकते हो और सुन सकते हो। ये तो कर ही सकते हैं।
प्रिय आपको याद दिला दूँ की हमारे यंहा स्वंय में से “मैं” को खत्म करना प्रार्थना मानी गयी है न कि उसे पोषित करने को। इसलिये अपनी अकड़ को, अहंकार को और मूर्खता को अगर कम नही कर सकते हो तो कृपया इन्हें और अधिक बढायें नही।
मेरा मानना है कि सर झुकाना, विनम्र होना, सरल और सहज रहना परमात्मा की सबसे अच्छी प्रार्थना है। सच्ची निष्ठा, ईमानदारी व प्रेम से अपने कर्त्तव्यों का पालन करना प्रार्थना है। ईश्वर की बात करता है उनके गीत गाना, उनके होने की बात करना प्रार्थना है। आस का दीपक जलाये रखना और दूसरों को निरन्तर दिखाना ही सर्वोच्च प्रार्थना है।
आज अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि आपका अस्तित्व न सिर्फ आपके लिये बल्कि सभी के लिये आनंद और शांति का दिव्य स्त्रोत बन जाये। आपको जल्द ही स्थिरता, परिपूर्णता और दिव्यता का अनुभव होने लगे। आपका जीवन, आपकी कहानी सभी को अच्छा करने के लिए, सकारात्मक सोचने के लिये प्रेरित करती रहे तथा बौद्धिक, आत्मिक, आध्यात्मिक व सांसारिक उन्नति के लिए प्रेरित करती रहे।
आपके तन मन में स्फूर्ति, उमंग और उत्साह बना रहे और आप हमेशा स्वस्थ, शांत, मजबूत और संतुलित बने रहें, इन्ही सब कामनाओ के साथ साथ मेरी आज प्रभु से प्रार्थना है कि आपके चेहरे पर मुस्कान बनी रहे और आपके घर आँगन में सदा खुशियों का वास बना रहे। मंगल शुभकामनाएं।
श्री रामाय नमः। श्री राम दूताय नम:। ॐ हं हनुमते नमः।।