आज एक बार दुबारा मेरा वही सवाल है कि अगर आपकी प्रार्थना से प्रसन्न हो कर परमात्मा कल आपके सामने प्रकट हो जाये और कहे कि मांगो क्या मांगते हो, तो आप क्या मांगने वाले हो?
मेरे अनुसार तो आप ये कहने वाले हैं कि प्रभु दो और दो का चार तो बहुत हो चुका, अब इस दो और दो को पांच बना दो। या फिर शायद आप कुछ शिकायतें करेंगे, अपने असंतोष को प्रकट करेंगे। और आप को आता ही क्या है। ये इतना हास्यपद हो सकता है कि इसका वर्णन नही किया जा सकता है 🤭।
९९% लोग प्रार्थना करने का अर्थ याचना अर्थात् मांगना मानते हैं मगर परमात्मा से क्या चीज मांगी जाए और परमात्मा हमें क्या वस्तु दे सकते हैं, इस बात को नही समझते हैं।
आज का ये लेख मुख्य रूप से इसी बारे मे है।
हे परमपिता परमात्मा, आप कृपा करके मेरे मन, आत्मा, शरीर, अंतःकरण, बुद्धि से सभी अहंकार, अज्ञान, अविद्या, अविवेक एवं अभाव दूर कर दीजिए। ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, मोह, क्रोध आदि दुर्गुण दूर कर दीजिए। आप ऐसी कृपा करें कि मैं सदैव आपके चरणों में रहूं, आपकी कृपा का पात्र बना रहूँ और आपसे मैं कभी दूर ना जाऊं।
कुछ अन्य याचनाएँ या मांग इस प्रकार हो सकती हैं:
हे नाथ, आपकी कथाओं और लीलाओं का गान करने में मुझे सदा ही रस प्राप्त हो। अंतिम दिन और अंतिम क्षणों तक मेरे रोम रोम से आपके नाम का जप होता रहे। ये उत्साह और ऊर्जा सदा बनी रहे।
कभी कोई ढोंग या पाखण्ड करने का मन हो आये तो भी केवल आपकी भक्ति का ही ढोंग पाखण्ड हो मुझ से।
अपने साथ साथ सृष्टि के सभी प्राणियों में भी आप की परम-सत्ता के अंश सदा दिखते रहें। आपके द्वारा बनाई गई इस सृष्टि की विशालता के सामने मुझे मेरी स्थिति का एहसास सदा बना रहता है।
हे मेरे स्वामी, मैं कभी गलत काम ना ना करूं। सदैव अच्छे काम करूं। दूसरों की भलाई करूं। मेरी किसी से कोई शत्रुता न हो। सभी प्राणी मेरे मित्र हों।
मेरी नाराजगी, लालच, ईष्र्या, मेरा अहंकार और मेरे सभी पूर्वाग्रहों तुरन्त प्रभाव से खत्म हो जायें। भ्रम-भय, दैन्य-संशय, अल्पता-अभाव आदि समस्त मानवीय दुर्बलताओं का तुरन्त अंत हो जाये।
मेरे शरीर के अंदर, मेरे मन के अंदर तथा मेरी आत्मा के अंदर किसी प्रकार की व्याधि, रोग, दुःख-दर्द ना हो, कोई पीड़ा कष्ट ना रहे। कोई संकट विपत्ति कभी ना आए।
हे नाथ, अगर मेरे मेरे पूर्व जन्म के कर्मों की वजह से अगर मेरे ऊपर कोई संकट या विपत्ति आये भी तो मैं धैर्य को धारण करूं और विवेक को कदापि ना खोऊं।
हे नाथ, प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति में भी आपके मंगलमय विधान को देख कर मन मे संतोष बना रहे तथा जीवन के हर आयाम को पूरी जीवंतता के साथ जीता रहूँ।
हे नाथ, मैं कभी कोई पाप न करूँ.. न होता देखूं.. न सुनू.. और न ही कभी किसी के पाप का बखान करूँ।
दूसरों को सदैव सुख ही दिया करूँ। दूसरे की कभी हानि ना करूं और न ही किसी के अहित का कभी भी सोचूं।
हे नाथ, मेरे मन, कर्म और वचन से.. कभी किसी को भी थोड़ा सा भी दुःख न पहुँचे… यह कृपा बनाये रखना।
हे प्रभु, अगर कभी किसी कारणवश, अज्ञानतावश मेरे वचन, कृत्य या किसी दूसरे कारण से किसी को दुःख पहुँचे… तो जानकारी होते ही, मैं उसी समय उससे हाथ जोड़कर क्षमा माँग लूँ और वे मुझे क्षमा कर दें।
हे प्रभु ! मेरा सभी कार्य, व्यवहार एवं आचरण वेदानुकूल हों। मैं वेद विरुद्ध कोई भी कर्म एक भी पल के लिए ना करुं। कभी पथ-भ्रष्ट न होने देना।
मेरे तन, मन और स्थितियों को इस लायक बनाये रखना की अंत समय तक सेवा करने के लिये दान पुण्य करने के लायक बना रहूँ। मेरे पांवो में इतनी शक्ति आखिरी सांस तक बनाये रखना की जंहा भी आपकी प्रशंसा हो आपके नाम की चर्च हो वँहा पहुंच सकूँ।
मैं हर किसी वस्तु को, रिश्तों को, मित्रों को और अपने जीवन को आपकी अनुकम्पा मानूँ और उसका आभार मानूँ, मेरे द्वारा किये हुए हर कार्य का आपको ही कर्ता मानूँ। सदा ही आपकी कृपा के लिये आपके सामने मेरा सर श्रद्धा से प्रेम से झुका रहे।
हे मेरे प्रभो, प्रत्येक परिस्थिति में मुझे आपके दर्शन प्राप्त हों..।।
मेरे हिसाब से जो परमात्मा सम्पूर्णता-श्रेष्ठता और दिव्यता का मूल स्रोत है, उस परिपूर्ण अखण्ड-आनन्द निर्विशेष परमात्मा से उसके साथ एकरूपता एवं अटूटपन के अलावा कुछ भी मांगना मूर्खता होगी।
इन दिनों जैसे आपकी सोच, विचार और कृत्य बिगड़ गए हैं वैसे ही प्रार्थना भी दूषित और कलुषित हो गई है। इन सब को शुद्ध करना है। परमात्मा है या नहीं, कंहा है कहाँ नही यह मत पूछो। प्रार्थना को शुद्ध करो। जिस दिन प्रार्थना शुद्ध हो जाती है, उस दिन तुम जान जाते हो की न केवल परमात्मा है, बल्कि बस परमात्मा ही है, और कुछ भी नहीं। उस दिन हर दिशा से उसी का संदेश आने लगते हैं और परमात्मा सब तरफ दिखाई पड़ने लगता है। उसी दिन आप बुद्ध हो जाते हैं।
आज अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ की वे आपकी प्रार्थनाएं स्वीकार करें। आपकी आध्यात्मिक सोच व जीवनशैली आपकी आत्मिक, नैतिक, आर्थिक और आपके कलात्मक उत्थान तथा जीवन उत्कर्ष का आधार बने और आपकी श्रेष्ठता, पवित्रता, शुभता और आपके-जीवन में निहित भगवत्ता जल्द ही उद्घाटित हो।
आपके विचार, कृत्यों, प्रार्थनाओं और जीवन में तालमेल बना रहे, सामंजस्य तथा समन्वय बना रहे इसी कामना के साथ आज मैं प्रभु जी से ये भी प्रार्थना करता हूँ कि आप सदा सरल, सकारात्मक, सार्थक और स्वस्थ बने रहें।
श्री रामाय नमः। श्री राम दूताय नम:। ॐ हं हनुमते नमः।।
Very nice bhai,,, 💐💐
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आपकी उत्साहवर्धन टिप्पणी के लिये ह्रदय से धन्यवाद 🙏🙏
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