रविवारीय प्रार्थना – क्षुद्र से जुड़ने की बजाये अपने विराटस्वरूप से जुड़ जाना ही प्रार्थना है।

हम सभी सुख चाहते हैं और दुख से बचना चाहते हैं। हम सब चिरस्थायी सुख चाहते हैं जिसमे दुख का लवलेश मात्र भी न हो, जिसमे कभी कोई कमी न आये। ये कोई नई बात थोड़े ही है। हजारों हज़ार साल से इसी अक्षय सुख (मोक्ष) की प्राप्ति ही इंसान की सबसे बड़ी चाहत रही है।

हमारी ये चाहत कोई गलत नही है। बल्कि मेरा तो ये मानना है कि इस सृष्टि के समस्त प्राणियों में केवल मनुष्य ही है जो शाश्वत सुख यानी के मोक्ष का अधिकारी है। मनुष्यों को ही ऐसी बुद्धि प्राप्त है कि वे जीते जी ब्रह्म का साक्षत्कार कर सकते हैं और अपने कर्मों से इस जीवन का परम लाभ उठाते हुए अक्षय सुख प्राप्त कर सकते हैं। यही तो हमारा लक्ष्य है और इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये पुरषार्थ और शुभ कर्म करते रहने हमारा धार्मिक कर्तव्य और प्रतिबद्धता है।

परन्तु ये बात सब को मालूम होने के बावजूद की वास्तविक अक्षय सुख की चाहत रखने वालों को केवल सत्कर्म यानी के पुण्य कर्मों में संलग्न रहना चाहिये, तात्कालिक सुख प्राप्त करने की होड़ में, लोभ, अहंकार, लालच, ईर्ष्या और गुस्से की वजह से हम उल्टे कर्म और असदाचरण करते रहते हैं। बताईये क्या आप को इससे पहले मालूम नही था कि पापकर्मों का परिणाम अकल्याणकारी होता है और पुण्य कर्मों का फल कल्याणकारी होता है, इस सच को भला कौन नही जानता।

लेकिन ये भी सच है कि आम तौर पर मनुष्य पूण्य के फल की इच्छा तो रखता है लेकिन पूण्य कर्म करने की इच्छा नही रखता है। जिस पापकर्म के फल को वो कभी नही चाहता उसे क्षण भर के सुख की वजह से, अज्ञानता एवं कुसंस्करो की वजह से दिनरात करने में लगा रहता है।

अपने द्वारा किये पापकर्मों के फल को काटने के लिये फिर लोग ईधर उधर दौड़ते फिरते हैं, चमत्कारों को ढूंढते हैं। लेकिन कोई भी डॉक्टर आपको दवाई बता सकता है आपकी जगह दवाई खा कर आपकी बीमारी ठीक नही कर सकता है। इसी लिये हमारे सभी सन्त महात्मा और ग्रँथ केवल सदाचरण और पुण्यकर्मों को ही हमारी सब लौकिक और पारलौकिक प्रतिकूलताओं का समाधान बताते हैं।

याद रखिये की कोई चमत्कार, कोई अन्य व्यक्ति या आपके द्वारा पल भर के लिये किया गया धर्म-दान-पुण्य के नाम पर पाखंड और प्रपंच काम नही आएगा। केवल आपके द्वारा किये गये भागवत भाव से पुण्य कर्म, सद्विचार, साधुता, सदाचार ही आपको वास्तविक सुख (मोक्ष) प्राप्त करवा पाएंगे, ईश्वर को आपके भीतर से प्रकट करवा पाएंगे और आपके उच्चतम लक्ष्यों को प्राप्त करने में आपके सहायक सिद्ध होंगे।

लेकिन मैं मानता हूं कि ये दुनिया बहुत बड़ी है, उसमें बहुत तरह के लोग हैं, उसमें अगर कोई चमत्कार से कोई चीज हासिल करना चाहता है तो उसे इस का हक है। और अगर कोई ऐसा कर सकता है तो उसे नमस्कार है, उसको इसका हक है और उसे करना ही चाहिये। अगर चमत्कार करने वाला और चमत्कार मनाने वाले, दोनों ही मजा ले रहे हैं, तब कोई बीच मे क्यों बाधा डालें। उनको जो करना है करने दीजिए। आपको क्या करना है मैंने समझा दिया है 🤭।

मेरा मानना है कि जो आप अपने स्व:भाव, कर्म, वाणी और विचार से बन सकते हो, वो बनने में पूरी तरह संलग्न रहना ही प्रार्थना है। किसी भी रूप में क्षुद्र से जुड़ने की बजाये अपने विराटस्वरूप से जुड़ जाना ही प्रार्थना है। इसीलिये क्षुद्रता, नीचता, ओछेपन, छिछोरेपन के कामों – गतिविधियों से बचना, निरन्तर चिन्तन और विवेक से पुण्यकर्म करते रहना, वाणी से मधुर और विचारों में सकारात्मक बने रहना उनकी सर्वोत्तम प्रार्थना है।

आज मेरे आराध्य प्रभु जी से प्रार्थना है कि आपके पुण्य कर्म, आपकी संकल्प-निष्ठा और सकारात्मकता आपके दैनिक व्यवहार एवं गतिविधियों से झलकती रहे तथा न सिर्फ आप अपने पूर्वजों द्वारा किये गये पुण्य कार्यों को आगे बढा पाने में सफल हों बल्कि दूसरों के पुण्यों के संचय में भी निमित्त बन पायें। उनसे प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों और सदैव स्वस्थ एवं श्री संपन्न रहें तथा आपके समग्र लक्ष्य जल्द ही सिद्ध हों जायें। आपके आनंद में झूमते जीवन के लिए मंगल शुभकामनाएं 🙏

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।।

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