रविवारीय प्रार्थना – स्वयं के प्रति सचेत रहना ही सर्वोच्च प्रार्थना है।

कबीर के भजनों के मशहूर गायक प्रहलाद सिंह टिपानिया जी का एक सुंदर भजन है जिसमे वे गाते हैं कि एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट मे बैठा। एक राम का सकल पसारा, एक राम इन सबसे न्यारा।।

मैं उन्हें तथा शबनम विरमानी को बहुत सुनता हूँ और पसन्द भी करता हूँ। लेकिन जितना मैं पढ़ता हूँ, सुनता हूँ और समझता हूँ उससे मुझे केवल एक बात लगती है कि वे कोई चार राम नही हैं। वे तो वही राम हैं जो घट-घट में बोल रहे हैं, वही तो दशरथ के घर थे, उन्ही राम का तो सकल पसारा है और मेरे अनुसार वही राम है जो सबसे न्यारे हैं। जैसे सबको अपने अपने अनुसार वही आकाश दिख रहा है जो अथाह है – अनन्त है, वैसे ही प्रभु का भी है।

परमात्मा आपको सदा सदा से आकाश की तरह उपलब्ध हैं। आप जहां भी हो, जैसे भी हो – वे आपके साथ हैं। बस सचेत रहो, खुले रहो और जागते रहो। मुझे लगता है ये हमारे जीवन का महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है।

रोम-रोम में रमने वाला परमात्मतत्व यानी के चैतन्यतत्त्व का नाम ही राम है। मैं अपने लेख में अक्सर इसी परमात्मा की बात करता हूँ जो मुझ में और आप सब मे आत्माराम के रूप में विराजते हैं।

इसीलिये हम साधारण इंसानो को न तो बहुत दूर के, गहरे प्रश्नों की फिक्र करनी है और न ही उन्हें पूछना है। हमे पिछले जन्म, आने वाले जन्म, स्वर्ग-नर्क या इस तरह की अन्य बातों में घुसने की जरूरत नही है। जो सबसे बड़ी जरूरत है वो है स्वयं के प्रति सचेत होने की। जरूरत है स्वयं को जगाने की। दूर देखने से पहले, जरूरत है अपने भीतर में या निकट देखने की। भविष्य की सोचने की बजाये जरूरत है वर्तमान क्षण के प्रति सचेत रहने की, क्योंकि ये वर्तमान क्षण ही है जो अपने में भविष्य और अतीत के सब उत्तर लिए रहता है।

इसीलिये मेरा मानना है कि स्वयं के प्रति सचेत रहना, अपने आत्म जागरण, आत्म संवरण तथा अपने आत्मविकास की परम संभावना के प्रति सजग रहना और सतत प्रयत्नशील रहना ही हमारी सर्वोत्तम प्रार्थना है। प्रबुद्ध तथा अप्रमत्त भाव मे रहना प्रार्थना है। अपने सोच-विचार, आचरण, कार्यों और व्यवहार के प्रति सावधान रहना ही प्रार्थना है। हमारे लिये पूजा पाठ का तात्पर्य केवल प्रभु श्री राम का नाम जपने या ईश्वर भक्ति से ही नहीं है अपितु उन मूल्यों के प्रति आदर-आचरण से भी है, जिनके हमारे प्रभु प्रतीक हैं। वे शिष्टाचार और सदाचार के प्रतीक हैं। वे स्नेहशीलता, सहनशीलता, उदारता और धर्य के प्रतीक हैं। उन्हें जो-जो प्रिय हैं, प्रेम, सत्य, शील, मर्यादा, सदाचार, संयम, सदाशयता आदि जैसे उनके सभी 16 गुणों को अपने दैनिक व्यवहार और आचरण में शामिल कर लेना प्रार्थना है।

आप अपने वचनों, प्रतिवचनों, कार्यों और प्रतिक्रियाओं के प्रति, अपनी वाणी और अपने व्यवहार के प्रति, बाहर की बजाय अपने भीतर के प्रति अत्यधिक सजग-सचेत हो जायें जिससे आपकी पूर्णता-श्रेष्ठता हासिल करने की यात्रा सरस, सुंदर तथा सुखमय हो जाये, ऐसी मेरे आराध्य प्रभु से आज मेरी प्रार्थना है।

आप को शतायु, स्वस्थ और सशक्त जीवन के लिये मंगल शुभकामनाएं 💐

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।

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