रविवारीय प्रार्थना – स्वमान मे स्थित हो जाना और स्वमान में बने रहना ही प्रार्थना है।

हम कुछ भी कहें, असल मे तो हम ईश्वर को सच्चे मन से पाना ही नही चाहते हैं। अगर सच मे हमें ईश्वर को पाना होता तो क्या ये बात समझने में इतनी देर लगती की सभी जीवों के शरीर मे प्राण और जीवात्मा उनका ही एक स्वरूप है। दुनिया भर का ज्ञान होने के बावजूद, तर्क वितर्क करने के बावजूद, इतना पढ़ने लिखने के बावजूद इतनी छोटी सी बात पता नही क्यों समझ नही आती है।

सोचियेगा की क्यों आप को अपने और दूसरों के भीतर वे नही दिखते हैं 🤣??

क्योंकि जैसे ही आपको इस बात का ज्ञान हो जाता है कि सभी प्राणियों में वे मौजूद हैं, वैसे ही आपके मन मे पाप कर्म करने की, कोई दुष्कर्म करने की भावना खत्म हो जाती है। बड़े-छोटे का भेद खत्म हो जाता है। सुंदर-असुंदर में फ़र्क़ मिट जाता है। आप सरल-सहज और सदाचारी हो जाते हैं। दूसरों से बड़ा होने-दिखने का आपका अहंकार खत्म हो जाता है। अपने स्वार्थपूर्ति के लिये छल कपट या कोई गलत काम करने की भावना खत्म हो जाती है।

जैसे ही आपको हर जगह – हर चीज में ईश्वर नजर आने लगते हैं, जैसे ही आप एक शुद्ध बुद्ध आत्मा बन कर सब जगह परमात्मा को अनुभव महसूस करने लगते हैं, आप परम् आनंद की अनुभूति करने लगते हैं तथा आपका दिव्य प्रकाश चारों दिशाओं में अपनी रोशनी फैलाने लगता है।

बताईये ईश्वर की प्राप्ति या यूं कहें कि पूर्णता, उच्चता महानता एवं असल सफलता प्राप्त करने का इससे सरल उपाय या मार्ग क्या ही हो सकता है। लेकिन इस सरल उपाय की बजाये कठिन और जटिल तरीको से हम उन्हें प्राप्त करने की कोशिश करते रहते हैं या यूं कहें कि पाखण्ड और प्रपंच रचते रहते हैं। असल मे हम अपने मन मस्तिष्क में जानते हैं कि हम क्या कर रहे हैं 🤭।

इसलिये मेरा मानना है कि स्वमान मे स्थित हो जाना और स्वमान में बने रहना ही प्रार्थना है। स्वमान से मेरा मतलब है – “मै पवित्र आत्मा हूँ और मेरे प्राण एवं आत्मा में ईश्वर विराजते हैं”। सदा अपने इस स्वमान के आसन पर स्थित होकर, तर्क वितर्क, ईर्ष्या द्वेष तथा छल कपट से दूर रहकर सभी मे भी ईश्वर हैं मानकर अपने अपने धर्मानुसार कर्म करना अपने कर्तव्यों और प्रतिबद्धताओं का पालन करना ही प्रार्थना है।

जिस प्रकार आप ये भली भांति जानते हैं कि प्रभु को केवल प्रेम भाव से शुद्ध भोग अर्पित करना होता हैं उसी प्रकार आपको मानना ही होगा कि केवल निर्मल, शुद्ध शांत मन, आपके सद्कर्म, आपका सरल व्यवहार और शुद्ध आचरण ही उन्हें प्रिय है। आप स्वयं भी इसे समझ सकते हैं कि धूर्तता, दुष्कर्म एवं दुष्टता कैसे आपको ईश्वर की यानी कि सर्वत्र प्राण-तत्व की अनुभूति करवायेगी, कैसे आपको उनकी कृपा का पात्र बनायेगी।

मैं आज अपने आराध्य प्रभु जी से प्रार्थना करता हूँ कि आपके भीतर अगर कंही भी कोई दुर्गुण अभी भी बाकी है तो वो सद्गुण में तब्दील हो जाये, बुराई रूपी विष अच्छाई रूपी अम्रत में बदल जाये। आपकी कुबुद्धि, अहंकार और सभी संदेह खत्म हो जाएं। ईश्वरीय भाव आपके प्रत्येक शब्द, व्यवहार और कार्यों से स्वभाविक रूप से प्रकट होने लगे। आप की विनम्रता, सरलता और सहजता सभी को सुख प्रदान करे और आपके आस पास अगर कंही भी कलुषित वातावरण है तो वो भी शुद्ध, पवित्र एवं आनंदमय हो जाये।

आपके जीवन में खुशियों के सभी रंग भरे रहें। आप शतायु हों, स्वस्थ रहें, सशक्त रहें। आपको अपने स्नेहीजनों से एवं परिजनों से स्नेह और प्रेम सदा मिलता रहे, इन्ही तमाम कामनाओं के साथ साथ मैं आज प्रभु जी से ये भी प्रार्थना करता हूँ कि है आपके घर-आंगन में सदा शुभता और मांगल्य की वर्षा होती रहे। मंगल शुभकामनाएं 💐

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।

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