रविवारीय प्रार्थना – संसार के ज्ञात और अज्ञात सभी प्राणियों में सद्भाव और शांति हो 🙏

हिन्दू मान्यताएँ सर्वश्रेष्ठ हैं ऎसी मेरी मान्यता है। मुझे उम्मीद है कि आप भी मेरी ही तरह – शरीर की नश्वरता, आत्मा की शाश्वतता, कर्मफलों के सिद्धांत, पुनर्जन्म और ईश्वर के सभी अवतारों में आस्था रखते होंगे।

मेरा मानना है कि हमारा मन, कर्म एवं चिंतन ही हमारे जीवन में खुशियों के लिए, दु:ख के लिए जिम्मेदार है, अन्य कोई भी नही। मुझे यकीनन लगता है कि आप भी जरूर मानते होंगे कि हमारा जीवन ही शास्त्र है और कर्म ही धर्म। बस किसी का गलती से भी बुरा न हो, सबके प्रति अच्छी सोच हो – इतना सा ही तो हमारा धर्म है। इस जीवन और समस्त सृष्टि के उन्नयन – उत्कर्ष हेतु शुभ संकल्पित रहना ही हमारा धर्म है, हिन्दू धर्म है।

आप चाहें पृथ्वी के किसी भी भाग पर रहते हों, आप की कोई भी मान्यता हो, आपकी पूजा पाठ की कोई भी विधि हो, अगर आपकी वाणी मीठी है, आपका कार्य परिश्रम से युक्त है, आप अगर मानते हैं कि आपकी उन्नति केवल अपना सुधार करने में है और निरन्तर श्रेष्ठ और महनीय कार्य करने से है तथा अगर हम अपने निजी दैनिक जीवन में सत्यनिष्ठापूर्वक ईश्वर से अपने आराध्य के रूप में प्रेम करते हैं तो उनकी कृपा प्रसाद पाने से, सार्थक जीवन जीने और हर हाल में खुशहाल रहने से आप को कोई नहीं रोक सकता है।

अगर आप सबके साथ शालीन, विनम्र और मधुर व्यवहार रखते हैं। किसी के द्वारा ख़राब बरताव किए जाने पर भी स्वयं पर संयम रखते हैं और स्वविवेक, शास्त्र-विचार व संयम से स्वयं को शान्त सहज रखते हैं, अगर आप मूल रूप से स्नेहिल, सरल, सौम्य हैं और आपका मन साधरणतः शांत, निर्मल एवं पवित्र बना रहता है तो ये बातें आप में निहित देवत्व की संभावना को प्रस्तुत करती हैं।

अगर आप ये मानते हैं कि आनन्द प्रसन्नता व शुभता हम सबका मूल स्वभाव है और हम ईश्वर की श्रेष्ठतम् कृति हैं तो जैसे मैं अपनी निजता के, संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं के गौरव को अनुभूत कर आनंदित एवं प्रसन्नचित्त रहता हूँ, आप भी जरूर रहते होंगे।

आपके पास बैठ कर अगर कुछ लोग अपना दुःख-दर्द एक पल के लिये भी भूल जाते हैं, सुख, संतोष का अनुभव करते हैं तो मेरे अनुसार आप पक्के वाले धर्मात्मा हैं। मेरा विश्वास है कि आप ये सब पहले से ही जानते हैं मानते हैं, बस ये सब आदतन एक बार सिर्फ दुबारा याद दिलाने के लिये है।

अपने कर्मों, भावों एवं विचारों की निरंतर समीक्षा करना ही प्रार्थना है। अपनी योग्यता, सामर्थ्य और धर्म के अनुसार लगातार अपने कर्म सजगता से करते रहना और प्रतिफल के प्रति सहज रहना ही प्रार्थना है। स्वयं को इस संपूर्णता का एक सुक्ष्म हिस्सा मान कर उनकी व्याप्ति और उनकी कृपा अपने आसपास हर चीज में देखने का प्रयास करना और हर वक्त उनके प्रति अनुग्रह का बोध रखना ही सच्ची प्रार्थना है।

मैं आज अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ की आपकी वाणी और व्यवहार से सदैव मीठा रस बरसता रहे। आपका आत्मबोध, आत्मिक आनंद और ख़ुशी न केवल आपको सृजनशील, संतुलित एवं सुखी बनाये रखे बल्कि संसार के ज्ञात और अज्ञात सभी प्राणियों में सद्भाव और शांति के प्रसार में भी प्रेरणादायक एवं सहायक सिद्ध हो।

मेरी उनसे ये भी प्रार्थना है कि आप उनके द्वारा निर्देशित मार्ग पर चलते हुये आप कई नई ऊंचाइयों को छुयें, अपनी आत्मिक शक्ति और दैव्य गुणों को विकसित कर पायें तथा बहुत जल्द ही पहले से अधिक स्वस्थ, हर मायने में सशक्त और समर्थ बन जायें। मंगल शुभकामनाएं 🙏

श्री राम दूताय नम:। ॐ हं हनुमते नमः।

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