रविवारीय प्रार्थना – परमात्मा को ढूंढना नही है, पहचानना है।

आज के लेख की शुरुआत मैं उन लाइनों से कर रहा हूँ जो मैंने कुछ समय पहले पढ़ी थी और भीतर तक उतर गयीं थी।

बीत जाती है जिंदगी ये ढूंढ़ने में कि क्या ढूंढ़ना है..
और पता ये भी नहीं चलता कि जो मिला हुआ है उसका क्या करना है।

अगर ये दो लाइनें और इनका अर्थ हमारी समझ में आ जायें तो बस काम बन जाये। मुझे लगता है कि इन्ही शब्दों में जीवन का सारा सार छिपा है।

मुझे कोई विशेष ज्ञान हासिल नही है, मैं बस काम की बात जानता हूँ और करता हूँ। मेरा मानना है कि परमात्मा को ढूंढना नही है, पहचानना है।

हमें परमात्मा का कोई चार, पांच या अष्ट भुजाधारी दैवीय स्वरूप नही ढूढ़ना है। हमें तो जो हमारे अंत:स्थल में ही प्रतिष्ठित हैं उन्हें पहचानना है। हमारे चारों और हर समय मौजूद परमात्मा को, भगवद तत्व को, उनकी चेतना को, उनके गुणतत्वों को पहचानना है।

सामान्य तौर पर परमात्मा की परिकल्पना में वह दैवीय स्वरुप सामने आता है, जो स्नेह, दया, क्षमा, सौहार्द्र, अपरिग्रह से भरा हुआ है और जो ईर्ष्या, द्वैष, हिंसा, प्रतिहिंसा, लोभ-लालच से परे हैं। बस इन्ही गुणों को जंहा भी देखें – महसूस करें, जिस भी जीव में इन गुणों को देखें, समझ लीजिए कि परमात्मा के दर्शन हो गए।

आज मेरी असल मे यही समझाने की कोशिश है कि ये हम ही हैं, जो उनकी मौजूदगी, उनके मूल भाव को, उनकी अनुभूति को अपने सुंदर मन, सद्व्यवहार और सत्प्रयासों के द्वारा संभव बनाते हैं या बना सकते हैं। तनिक गंभीरता से सोचकर देखिए कि क्या आपके लिये ऐसा बनना कठिन है? मन में संकल्प कर लें, तो थोड़े से प्रयासों से इसे संभव बना सकते हैं।

वास्तव में हम सभी केवल शरीर नहीं हैं, बल्कि आत्मा हैं और आत्मा से परमात्मा का मिलन करवाने के लिए ही यह शरीर हमें मिला है। इसीलिये उनके पद-चिह्नों पर चलना, उनके बताये हुए दिशा-निर्देशों-उपदेशों का पालन करना और उनके सभी गुणों को अपनाना ही हमारी सर्वोच्च प्रार्थना है।

केवल जोर जोर से जयकारे लगाने से कुछ नहीं होगा। बरसों से सतत धार्मिक क्रियाएं करने के बाद भी यदि जीवन नहीं बदला तो समझिए कि हम धर्म को सही तरह से आत्मसात नहीं कर पाए। परमात्मा की सच्ची प्रार्थना उनके गुणों को अपनाना है उन्हें अपने दैनिक व्यवहार और आचरण में लाना है।

मैं आज मेरे आराध्य प्रभु जी से प्रार्थना करता हूँ कि आप को स्वंय को परमात्मा के रूप में देखने-समझने-अभिव्यक्त करने और उन जैसा व्यवहार करने की ताक़त और हिम्मत दें तथा आपकी आत्मा में निहित उनकी अनन्तता और छवि पूरी तरह से जल्द ही प्रकट हो जाये।

मैं आज मेरे आराध्य प्रभु जी से ये भी प्रार्थना करता हूँ की आपके भीतर क्रोध, अहंकार, माया और छल – कपट जैसी आंतरिक कमज़ोरियां तेजी से कम होने लगें। मन, देह और वाणी धीरे-धीरे सरल – सहज -निर्मल होने लगे। दिन प्रतिदिन आत्मा और परमात्मा के बारे में आपका अनुभव बढ़ता रहे।

मेरी उन के श्री चरणों मे ये भी प्रार्थना है की आप हमेशा हंसते और खिलखिलाते रहें, स्वस्थ रहें तथा आपके घर-आंगन में सदा शुभता और मांगल्य की वर्षा होती रहे। मंगल शुभकामनाएं 💐

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।।

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