रविवारीय प्रार्थना – स्वयं का जानना, मानना और उसका निरन्तर विश्लेषण करना तथा स्वयं को अपने बीते कल से बेहतर बनाना मृत्यु के भी पार जाने वाला अमृत सूत्र है।

पशुवृत्ति, बुरी आदतें, ईर्ष्या, द्वेष और जलन, लोभ-लालच, झूठ बोलना, क्रोध करना और अहंकार किस में नही है। हम सभी मे कुछ न कुछ सही-गलत है।

असल मे तो इस पृथ्वी पर बहुत थोड़े से ही मनुष्य हुए हैं जो इन विकारों को पूरी तरह त्याग पाये हैं या अपनी नर्संगिक पशुता के पार गए हैं। जिन महात्माओं और बुद्धों ने स्वयं को जाना है, स्वंय को भीतर से देखा है बस वे ही केवल अपने पाशविक स्वभाव और मूर्खता के पार गए हैं। हम जैसे बाकी लोगों के लिये तो इतना ही काफी है कि हम अपने भीतर की वास्तविकता को पहचान लें और उसे स्वीकार करलें, क्योंकि अपने गुणों और अवगुणों से परिचित हो कर ही हमारा रूपांतरण हो सकता है, कुछ बदल सकता है।

प्राय: दूसरों का विश्लेषण करना और उन्हें उनके किये हुए बर्ताव, व्यक्तित्व और कार्यों के अनुसार वर्गीकृत करना बहुत सरल होता है। लेकिन सच्ची ईमानदारी के साथ उसी विश्लेषण के प्रकाश में स्वयं को देखना बहुत कठिन है। इसीलिये स्वयं का अवलोकन कड़ाई से करते हुए अपने दोषों, अवगुणों और विकारों का दमन करना ही हमारी सच्ची प्रार्थना है और यही आत्म सुधार का सबसे बढ़िया मार्ग है। जो न् सिर्फ प्रसन्नता और आनंद की मंजिल तक पहुँचने का साधन है, बल्कि अपने अन्तःकरण में परमात्मा का अनुभव करने का भी सर्वोत्तम उपाय है।

बुद्धपुरुष केवल इतना ही कहते हैं आगर आपने अपनी आत्मा को पहचान लिया तो परमात्मा को पहचान लिया। स्व को जान लिया तो सब को जान लिया। स्वंय के जान लेने से ही सब कुछ जान लिया जाता है। जिसने सब जान लिया और स्वयं को न जाना, उसका कुछ भी जानने का क्या उपयोग? और जिसने कुछ भी न जाना और स्वयं को जान लिया, उसने सब जान लिया। क्योंकि अंततः जीवन में जो भी असल मे प्राप्त होगा, वह केवल स्वयं को सही से जानने और उसके रूपान्तरण से घटित होगा।

इसलिए स्वयं का जानना, मानना और उसका निरन्तर विश्लेषण करना तथा स्वयं को अपने बीते कल से बेहतर बनाना ही सबसे सही मार्ग हैं..मृत्यु के भी पार जाने वाला अमृत सूत्र है।

आज मेरे आराध्य प्रभु जी से प्रार्थना है कि आपके भीतर का दीया जल्द ही जल उठे और उसका प्रकाश आपको अपनी वास्तविक दशा का बोध निरन्तर कराता रहे तथा आपके आत्म- जागरण/संवरण के सभी प्रयास तेजी से सफल हों।

आपकी आत्मनिवेदन से आत्मविसर्जन की यात्रा सरस, सुंदर, रसमय तथा सुखमय बनी रहे, आप हर प्रकार से सफल हों, आनंदित रहें, सुरक्षित रहें और स्वस्थ रहें, ऐसी सब आज उनसे मेरी प्रार्थना है। मंगल शुभकामनाएं💐

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।।

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