रविवारीय प्रार्थना – अपने जीवन के कोयले को असाधारण हीरा बनाना ही प्रार्थना है।

जब डाकू सबसे बड़े वाले ऋषि बन सकते हैं, जब सम्राट भिक्षुक बन सकते हैं और जब चरवाहे सम्राट बन सकते हैं, तब आप क्यों नही महर्षि वाल्मीकि या चक्रवर्ती सम्राट अशोक या चन्द्रगुप्त मौर्य या बुद्ध बन सकते हैं या वो जिसकी आप सिर्फ कल्पना करते हैं। जब आप अपने जीवन के कोयले को असाधारण हीरा बना सकते हैं तो इसे यूँही कच्चा कोयला बनाये रखना कंहा की समझदारी है।

रूपांतरण प्रकृति का ऐसा अद्भुत चमत्कार है जिसके द्वारा संसार के लगभग सभी तत्वों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में गुणात्मक परिवर्तन तथा वृद्घि की क्रिया निरंतर चलती रहती है। कलिका का पुष्प बन जाना, मिट्टी का चट्टान बन जाना, गंदगी का खाद बनकर सुगंध में परिवर्तित होना रूपांतरण का ही परिणाम है। आप के बारे में आप जाने 🤭…

हमारे धार्मिक ग्रन्थों में असंख्य कहानियां हैं, उदाहरण हैं जिनसे ये स्पष्ट होता है कि मनुष्यों के विकारों में भी शक्तियां हैं, जो रूपांतरित होकर दिव्यता की प्राप्ति कर लेती हैं। जीवन का आध्यात्मिक सत्य यही है कि इसमें जो अदिव्य है वह भी बीज रूप में दिव्य है। जो एक स्तर पर पशु है वही दूसरे स्तर पर प्रभुता अर्थात दैवी गुणों से युक्त है। पशुता और प्रभुता में विरोध नहीं विकास का क्रम छिपा है। यह बात समझते ही, इसे आत्मसात करते ही आत्मोन्नति होने लगती है तथा भीतर छुपा हुआ उर्जा का भंडार जागृत होने लगता है और मनुष्य स्वयं ही अलौकिक सिद्धियों का स्वामी बनता चला जाता है।

रूपांतरण से मेरा मतलब केवल बोध से है – मेरा मतलब गंदगी को हटाने से नहीं है, बल्कि उसे खाद में परिवर्तित करने से है। मेरा मतलब केवल अपने अंदर देवत्व के सदगुणों के विस्तार से है। जीवन का हर वर्ष, प्रति मास, प्रति दिवस, प्रत्येक घड़ी आपकी आत्म-अनुभूति, आपके आत्म-संवरण तथा रूपांतरण के अनेकोनेक अवसर लाता है, बस इन्ही अवसरों का पूरा लाभ उठाते हुए, अपनी सभी दुष्प्रवृत्तियों को सत्प्रवृत्तियों में रूपांतरण करने का प्रयास करना ही सर्वोच्च प्रार्थना है।

इधर जाइये या उधर जाइये, छुट सबको है चाहे जिधर जाइये, जब सुधरने को मजबूर होना पड़े, उससे पहले स्वयं ही सुधर जाइये 🤣।।

अपने चिन्तन, रुझान, व्यवहार, कार्यशैली और दैनिक जीवनशैली का परिवर्तन, अनौचित्य का परित्याग और औचित्य को स्वीकार करने का हर दिन नये सिरे से साहस भरा प्रयास ही धार्मिक होना है, हमारी प्रार्थना है। और ये चौबीस घंटे का कृत्य है, भाव है। इसे आप कभी-कभी नहीं कर सकते। ये जीने की एक अलग शैली है। इसमें हमे ऐसे जीना होता है कि आप जो भी करें- कहें वह किसी न किसी रूप में परमात्मा से संयुक्त हो जाए।

मैं आज अपने आराध्य प्रभु जी से प्रार्थना करता हूँ कि आपके भीतर जो भी श्रेष्ठ है वो तेजी से ऊपर आये, आपके भीतर का आध्यात्मिक प्रकाश नजर आने लगे तथा आपके महान कार्यों का यश और आपके बुद्धत्व की सुगंध और खुशबुयें चारो दिशाओं में जल्द ही फैल जाएं।

मेरी आज उन से ये भी प्रार्थना है कि की इस जीवन में जो भी श्रेष्ठ है, जो भी महत्वपूर्ण है और जो भी उपलब्ध करने योग्य है वो आपको मिल जाये तथा आप सदैव स्वस्थ रहें, शतायु हों, प्रसन्नचित रहें और प्रगती पथ पर अग्रसर रहें।मंगल शुभकामनाएं।

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।

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