Manifestation • Mindset • Abundance • Blessings Your future self has brought you here. Time to Align, Attract & Evolve, Now🦸
आप अपने विचारों से, वाणी से, दैनिक व्यवहार से और अपने कर्म से प्रतिक्षण स्वयं को बाट रहे होते हैं, दान कर रहे होते हैं। मेरा मतलब है की वो नही जो आपने अपने ऊपर आरोपित किया हुआ, जो ओढा हुआ है या की जो आपकी जेब मे है, बल्कि जो आपके अंतस में हैं, आप जो स्वभाविक रूप से हैं आप जाने अनजाने मे उसीको बांटते हैं, फैलाते हैं, प्रसारित करते रहते हैं और असल मे केवल वही सत्य आपके प्रभु तक भी पहुंच रहा होता है।
अब जब आपके भीतर राछस छुपा बैठा हो, आपके अंदर अशांति हो, दुःख हो, संताप हो, अंधकार और जड़ता हो तथा आनन्दरिक्त, अर्थशून्य जीवनशैली हो तो आप वही बांटते फिरते हैं। लेकिन जब आप सत्वगुण सम्पन्न हों, प्रसन्न हों, आनन्द और प्रेम में भरे हों, जब आपका अंतर्मन निर्मल, पवित्र और स्वच्छ हो तो न चाह कर भी आप से उत्साह, उल्लास, उमंग, प्रसन्नता, दिव्यता और महानता की सुरसुरी वैसे ही प्रवाहित होती रहती है जैसे कि हिमालय से पवित्र गंगा।
इसीलिये गुण, कर्म और स्वभाव की श्रेष्ठता के अभाव में, ह्रदय में प्रेम, आनंद और मन मे शांति के अभाव में आप कोई भी प्रार्थना कर लें, पूजा पाठ कर लें, दान धर्म कर लें, वह कभी भी आपको उच्चता, आध्यात्मिक या दिव्यता की ओर ले जाने में समर्थ नही होती है क्योंकि इनके अभाव में आपके किये के आधार किसी-न-किसी रूप में भय, अहंकार, लोभ लालच पर होते हैं और वो उनको प्रिय नही हैं। आप जानते ही हैं।
जब आप फूल की तरह होते हैं तो सुगंध और सौंदर्य से भरे रहते हैं और वही फैलाते हो। लेकिन अगर आप कांटे की भांति जी रहे हो तो आप कुछ भी कर लो न सिर्फ दूसरों को बल्कि स्वंय को भी केवल चुभते ही रहते हो।
स्मरण रहे कि आप को भीतर से फूल होना है। ये नही हो सकता कि आप अंदर से तो कांटे रहो और ऊपर से फूल के स्वभाव को ओढ़ लो। ये कोई वस्त्र नहीं है जिसे कि आप ऊपर से ओढ़ सकें। बल्कि ये ओढ़ना नहीं, उघाड़ना है, मेरा मतलब अपनी दिव्य आत्मा को, अपनी ईश्वरीय चेतना को जाग्रत करना है।
इसीलिये मेरे अनुसार सर्व के प्रति प्रेम स्वभाव हो, स्वंय से आप पूरी तरह से परिचित हों, अपने स्व-भाव तथा अपने कर्मों पर आपको गर्व हो, आप अपराध-भाव से मुक्त और आनंदित रहें तभी पशुता से प्रभु तक का सफर सम्भव है, तभी बारहो मास इस जीवन मे जीवन मे शुभता, आरोग्यता, उन्नयन एवं उत्कर्ष संभव है।
जन्म पा लेना एक बात है, लेकिन असल में जीवन को पा लेने का सौभाग्य हम में से बहुत कम मनुष्यों को उपलब्ध हो पाता है। इसीलिये अपनी क्षुद्रता, संकीर्णता, स्वार्थपरता को पूरी तरह से त्याग कर स्वंय में स्थित परम सत्ता की दिव्यता, महानता से एक हो जाना प्रार्थना है। अपने व्यक्तित्व को उन्हीं गुणों से अलंकृत करे रखना जो हम जानते हैं कि परमात्मा में है प्रार्थना है। हर कार्य भगवान का कार्य, भगवान के हाथ का यंत्र बन कर, भगवानमय होकर उन्हीं के लिए कार्य करना प्रार्थना है। प्रत्येक परिस्थिति में सम रहकर उन की कृपा और करुणा का निरन्तर ध्यान करना ही प्रार्थना है।
मैं आज अपने आराध्य प्रभु जी से विनम्र निवेदन करता हूँ की आपके प्रत्येक शब्द, कर्म और क्रियाओं से भगवदीय गुण, प्रेरणा और चेतना प्रतिबिम्बित होने लगे, आत्म-गौरव के भाव प्रस्फुटित होने लगें तथा आप का जीवन धन्य बन जाये…।
आपके उत्तम स्वास्थ्य, मंगलमय और शतायु जीवन की कामना के साथ साथ उन से ये आज ये भी विनती कि आपके सद्गुणों में, सत्कर्मों में, सत्प्रवृत्तियों में और सदस्वभाव में निरन्तर बढ़ोतरी हो, ईश्वरीय पवित्रता और महानता से सुसम्पन्न आपकी आत्मा जल्द ही जाग पड़े जिससे आपकी आत्म उन्नति एवं अप्राप्त की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो सके तथा सभी प्रकार की शुभ सम्पदायें और विभूतियां चारों तरफ से खींच कर आपके आस पास जमा होने लगें। मंगल शुभकामनाएं।
श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।
