आपके आध्यात्मिक या धार्मिक होने की पहचान बाह्य पहनावे से नहीं बल्कि आपके आंतरिक रूप से होती है…

ज़रूरी नहीं कि हर आध्यात्मिक या धार्मिक व्यक्ति भगवे वस्त्र और रुद्राक्ष माला धारण किये हों तथा ये भी ज़रूरी नहीं कि वह आश्रम में ही रहते हों या साधु हों अथवा साध्वी ही हों..

किसी भी व्यक्ति के अध्यात्म की पहचान उसके बाह्य पहनावे से नहीं उसके आंतरिक रूप से होती है, उसके विचारों से होती है उसके शुभ संकल्पों और उसके अच्छे कामों से होती है। उसकी सरलता, विनम्रता, सहिष्णुता, दम्भहीनता, अहिंसा, पवित्रता, स्थिरता, उसके आत्मसंयम से होती है।

आध्यात्मिक अथवा धार्मिक होने से आज मेरा मतलब है की आप मे से परमात्मा का स्वतः ही प्रतिबिम्बित होना- यानी के आपके दिव्य स्वरूप का प्रकट होना।

इसीलिये मेरा मानना है कि आपके मुख से निकला प्रत्येक शब्द ईश्वर से संवाद करने जैसा हो जाना, प्रत्येक व्यवहार का, आचरण का, कार्य का तथा हर एक अभिव्यक्ति का आपके द्वारा की गई उनकी प्रार्थना की अनुकृति हो जाना ही प्रार्थना है। अपने भीतर उतर कर जो भी मलिनता, स्वार्थीपन, कपटिपन तथा असंतुष्ट भाव या अन्य व्यर्थ की घटिया बातें जो कुछ विषम परस्थितियों की वजह से जमा हो जाती हैं उन्हें निरन्तर साफ करते रहना प्रार्थना है। अपने अन्तस् को हर हाल में स्वच्छ, पवित्र, परोपकारी, प्रेमपूर्ण तथा प्रसन्न बनाये रखना हमारी प्रार्थना है।

आज अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि वे आपको स्वयं की भूमिका, उद्देश्य और महानता को शीघ्र ही पहचानने में सहायता करें, जिससे आपकी वैचारिक एवं व्यवहारिक उच्चता और श्रेष्ठता, आपकी धार्मिक और आध्यात्मिक समझ सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन जाएँ।

आज और आने वाला प्रत्येक नया दिन आपके लिए अत्यंत सुखद रहे, आपका घर-संसार चिरस्थायी प्रसन्नता से सदैव भरा रहे, आप सदा स्वस्थ रहें, ऐसी सब मेरी आप सबके लिए मंगलकामनायें हैं.

श्री रामाय नमः। श्री राम दूताय नम:। ॐ हं हनुमते नमः।।

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