रविवारीय प्रार्थना – अपने मन-वचन और कर्म के प्रति सजग तथा कर्मफल को लेकर सहज रहना।

आज इस रविवारीय लेख के लिये जब मैं मंथन कर रहा था – पढ़ रहा था, तब कुछ सूत्र समझ आये, कुछ पुरानी व्यख्याएँ, कुछ नई विवेचनायें मन मे आयी। वही आज यंहा लिख रहा हूँ। मुझे उम्मीद है कि आज का ये लेख आपकी आनंद, आत्मशांति, आत्मउत्कर्ष तथा पूर्णता प्राप्त करने की यात्रा और लक्ष्य को थोड़ा और सरल, सहज और सुगम जरूर बनायेगा।

सबसे पहले सबसे महत्वपूर्ण बात – अगर हम सब के जीवन का लक्ष्य सूक्ष्म से विराट तक की यात्रा सफलता पूर्वक पूरी करना है तथा ब्रह्मांड के हर कण की भांति अपना ईश्वरीय स्वरूप हासिल करना है…तो फिर अपने मन-वचन और कर्म के प्रति सजग तथा कर्मफल को लेकर सहज हो जाना होगा। हमारे सबसे पूजनीय और महान ग्रँथों का तो यही कहना है।

अपनी इहलौकिक उन्नति के साथ साथ पारलौकिक उन्नति करना और आनंद से अपनी पूर्णता प्राप्त करना तभी सम्भव है जब आप भीतर से निर्दोष हो जाते हैं, निर्मल एवं शांत हो जाते हैं तथा जब आपके इष्ट के गुणों का, श्रेष्ठताओं का और उनकी सुंदरता का आपके शरीर और मन में विलय (स्थानातंरण) हो गया है।

मुझे तो सब पढ़ सुन कर यही समझ आता है कि वैचारिक शुचिता, सद्‌भावनाओं और सत्प्रवृत्तियों से ओतप्रोत दैनिक जीवन जीना ही प्रार्थना है। अपने मन को, अपने आचार-विचार और कर्म को अपने विराट अस्तित्व के जैसा बनाये रखना ही प्रार्थना है। अपना ध्यान अपने लक्ष्य पर यानी के अपने ईश्वरीय स्वरूप की उपलब्धि पर ही टिकाये रखना प्रार्थना है। उम्मीद है कि आपको भी यही समझ आयेगा।

मैं आज अपने आराध्य से प्रार्थना करता हूँ कि जो समझ और उत्कर्ष लाखों वर्ष के घर्षण और संघर्ष से भी प्राप्त नही होती हैं वो आपको जल्द ही प्राप्त हो जाये। आपको जल्द ही अपने ईश्वरीय स्वरूप को प्राप्त करने के लिये यानी के खुद के सर्वश्रेष्ठ संस्करण तक पहुंचने के लिये एक सीधी रेखा मिल जाये। आपके स्वस्थ, श्री संपन्न और आनंद में झूमते जीवन के लिए अनेकानेक मंगल शुभकामनाएं 🙏

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।

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