रविवारीय प्रार्थना – उपक्रम जारी रहें, कर्म जारी रहे, श्रम जारी रहे और फलाकांक्षा परमात्मा के हाथ में हो।

अन्तः करण में एक ऐसी शक्ति काम करती है, जो सन्मार्ग पर चलने से प्रसन्न, सन्तुष्ट हुई दिखाई पड़ती है और कुपंथ अपनाने पर खिन्नता, उछिनता का अनुभव करती है । अंतरात्मा की इसी परत में से ईश्वर झाँकता हुआ देखा जा सकता है और कोई तरीका नही है।

नमस्कार मित्रों! आज रविवार है, आइए हम कुछ क्षण शांत बैठकर इस बारे में एक बार फिर विचार करें और उन सभी बातों सिद्धान्तों को याद करें जो हम सब पहले से ही जानते हैं। मैं आज ही नही बल्कि प्रत्येक दिन केवल वही याद दिलाता हूँ जो आप पहले से ही जानते हैं।

अपने कर्म को समर्पित भाव से करें, सफलता या असफलता की चिंता न करें। वर्तमान क्षण पर एकाग्रचित्त रहें, फल की आशा न कर के, बस अपने कर्म पर अपने उपक्रम पर ध्यान लगाएं, उन्हें बदस्तूर अपनी योग्यता, क्षमता, सामर्थ्य और पूरी शक्ति लगा कर पूरी निष्ठा से रोज जारी रखें। आज भी और कल फिर।

उपक्रम जारी रहें, कर्म जारी रहे, श्रम जारी रहे और फलाकांक्षा परमात्मा के हाथ में हो – तो समझो प्रार्थना हुई। उनसे समन्वय हुआ। मन की, कर्म की, भाव की यह पुनरावर्ती, यही स्थिरता योग है, उपासना है, प्रार्थना है। स्वयं को इस संपूर्णता का एक सुक्ष्म हिस्सा मान कर उनकी व्याप्ति और उनकी कृपा अपने आसपास हर चीज में देखने का प्रयास करना और हर वक्त उनके प्रति अनुग्रह का बोध रखना ही सच्ची प्रार्थना है।

मैं आज अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि उनके द्वारा निर्देशित मार्ग पर चलते हुये आप कई नई ऊंचाइयों को छुयें, अपनी आत्मिक शक्ति और दैव्य गुणों को विकसित कर पायें तथा बहुत जल्द ही पहले से अधिक स्वस्थ, हर मायने में सशक्त और समर्थ बन जायें।

मंगल शुभकामनाएं 🙏

श्री राम दूताय नम:। ॐ हं हनुमते नमः।

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