रविवारीय प्रार्थना – बोध प्राप्त करने का निरंतर प्रयास।

राम राम मित्रों, आज रविवार का दिन मेरे लिये चिन्तन, आत्म अवलोकन और आत्म जागरण का दिन होता है। और जिस विषय पर मैं आज चिन्तन कर रहा हूँ वो आपके लिये भी हाज़िर है। उम्मीद है आप भी इस पर सोचेंगे जरूर। आज मैं सतयुग और कलयुग के बीच के अंतर को देख रहा था। मैंने ये पाया कि यह अंतर केवल युगों (समय) का नहीं, बल्कि हमारी सोच, वचन, कर्म, स्वधर्म का ज्ञान और पालन तथा सबसे महत्वपूर्ण – बोध का अंतर है।

मित्रों, बोध का शाब्दिक अर्थ ‘समझ’ होता है। किसी भी कर्म को करने से पहले उसमें सही और गलत का निर्णय लेना और गलत को त्याग कर सही कर्म को ही करना – बोध होना है। बस यही बोध ही तो सतयुग का द्वार है।

मुझे लगता है कि उदर-भरण और परिवार का पालन-पोषण भी जीवन का लक्ष्य हमेशा से ही रहा है। तलब के तकाजे हर समय पर थे 🤭। मोक्ष, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, यश, आदर, धन – ये सभी इच्छाएं सदैव से मनुष्यों के मन में रही हैं। जीवन में विकास और श्रेष्ठता प्राप्त करने की चाह भी हमेशा से विद्यमान रही है। लेकिन सतयुग और कलयुग में इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के तरीकों में भिन्नता है। सतयुग में, शुभकर्म, मेहनत और स्वधर्म पर बल दिया जाता था, जबकि कलयुग में क्षुद्रता, नीचता और अधर्म भी अपना रास्ता बना लेती है।

इसीलिए मेरा मानना है कि सतयुग और कलयुग के बीच का ज्यादातर अंतर बोध का अंतर है। सतयुग में, लोग सत्य और धर्म के प्रति जागरूक थे, और वे जानते थे कि जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है। कलयुग में, लोग अज्ञान और भ्रम में जीते हैं, और वे जीवन के सच्चे अर्थ को भूल गए हैं। इसीलिये इस बोध से पहले का समय कलयुग है और इस बोध के बाद का समय सतयुग है।

मित्रों, बोध प्राप्त कर आज ही हम कलयुग की अंधेरी गलियों से निकलकर सतयुग के उज्ज्वल प्रकाश में प्रवेश कर सकते हैं।याद रखिये की बोध ही वह कुंजी है जो हमें कलयुग से बाहर निकालकर सतयुग की ओर ले जा सकती है।

बोध प्राप्त करने के लिए, हमें प्रतिदिन आत्म-अवलोकन और आत्म-चिंतन करना होगा। हमें अपने विचारों, शब्दों, और कर्मों पर ध्यान देना होगा। हमें यह समझना होगा कि हम असल मे क्या चाहते हैं और हमें इस जीवन से क्या प्राप्त करना है और इस जीवन के बाद क्या चाहते हैं 🤔।

समय रहते जागें और अपनी कार्यशैली और विचारधारा में बदलाव लाएं। अपने भीतर के द्वार को खटखटाएं। जल्द ही बोध का चिराग अवश्य प्रज्वलित होगा। और ये भी बता दूं कि ये जो सतयुगी बोध है न वो एक चिराग की तरह है जो आपके भीतर जलने को तैयार बैठा है। बस थोड़ी सी समझ और थोड़े से प्रयास की ही जरूरत है 🤫।

बस यही बोध प्राप्त करने का सतत प्रयास करना, यही आत्म-अवलोकन और आत्म-चिंतन करना हमारी प्रार्थना है।

आज मैं आने आराध्य प्रभु जी से प्रार्थना करता हूं कि उनकी कृपा से न केवल आपको जल्द ही बोध प्राप्त हो जाये, बल्कि आपके आस पास का ऊर्जाक्षेत्र और बोद्धक्षेत्र भी लगातार बड़ा होता जाए जिससे न केवल आप अपने जीवन में खुशी और समृद्धि प्राप्त कर पायें, बल्कि अपने परिवार और समाज के लिए भी वरदान बन जायें।

आप को शतायु, स्वस्थ और सार्थक जीवन के लिए ढेरों ढेर मंगल शुभकामनाएं।

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।

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