रविवारीय प्रार्थना – अपने मूल आत्म स्वरूप का बोध बनाये रखना और उसी स्वरूप के अनुसार अपने विचार, शब्द और गतिविधियों को बनाये रखना।

मुझे आपको ये याद दिलाकर एक बार पुनः बहुत खुशी हो रही है की हम सभी परमात्मा के अंश हैं। हम सब में ईश्वरीय चेतना है और हम सब अपार क्षमताओं से परिपूर्ण हैं। लेकिन हमारे दुःख और हमारी दुर्गति की जड़ है इस सत्य को भूल जाना।

जब हम बाहरी दुनिया के प्रभाव में आकर इस सच्चाई और अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाते हैं, तब दुःख का जन्म होता है। टेलीविज़न, सिनेमा, सोशल मीडिया और हमारे आस पास की आत्‍ममुग्‍ध तथा इन्ही चीजों से भरी हुई दुनिया हमें भ्रम और भ्रांतियों के संसार में लगातार धकेलती जाती है और हम भी निकृष्टतम इच्छाओं और कामनाओं के बंधनों में जकड़े चले जाते हैं। यदि हम सहज सधारण जीवनशैली अपनाएँ और अपने शुद्ध, शाश्वत असली आत्म-स्वरूप का पहचानने और अनुभव करने लगें तथा अपने हर पल को सौद्देश्य और सार्थकता से भर लें तो हम परमानन्द के अधिकारी बन सकते हैं और इहलौकिक एवं पारलौकिक अनुकूलताओं का सृजन कर सकते हैं।

बस अपनी इसी दिव्यता का, सामर्थ्य का, चेतना का और अपने मूल आत्म स्वरूप का बोध बनाये रखना और उसी दिव्य स्वरूप के अनुसार अपने विचार, शब्द और गतिविधियों को बनाये रखना प्रार्थना है।

इसीलिए सच मानिये की की यह मानना व्यर्थ है कि रोज़ छोटी-मोटी पूजा के क्रम को पूरा कर देने मात्र से आत्मकल्याण या ईश्वर प्राप्ति का कोई महती लक्ष्य पूर्ण हो जायेगा। ये जो रोज सुबह शाम पूजा-पाठ या धुप बत्ती आप करते हैं वो बस उस भटकते चित्त को – उस मन को घसीटकर वापस अपनी प्राथमिकताओं को पूरा करने, अपने मूल स्वरूप की स्पष्टता और ईश्वरीय चेतना को जगाने का अभ्यास है, एक कार्यविधि है। स्वयं को दुबारा दुबारा सही दिशा-निर्देशों से भरना है। उनकी करुणा, कृपा और अनुग्रह का पात्र तो सच में कोई तब ही बनता है जब हम इन पूजा पाठों में, आरतियों में, धार्मिक कहानियों और ग्रंथों में लिखे गए या सुने गए दिव्य और पवित्र गुणों – धर्मों के अनुसार अपने मन, चित्त, प्रवर्तियों को और जीवन को पूरी तरह से रूपांतरित कर लेते हैं तथा सतकर्मों को सतत करने लगते हैं। उम्मीद है ये बात आपको समझ आयी होगी????

आज मैं अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि आपके भीतर जो नाना प्रकार की निन्दनीय इच्छायें, दोष – दुर्बलतायें और विकार, किन्ही बाहरी प्रभावों से अनजाने में पैदा हो गए हैं या आपने जानबूझ कर इकट्ठे कर लिए हैं, वे उन सब को जल्द ही पूरी तरह से परिवर्तित करने, रूपातंरित कर ने, बदलने में आपकी सहायता करें जिससे की आपकी आत्मा से परमात्मा की यात्रा में प्रगति हो सके तथा आप सही मायने में भगवद कृपा की प्राप्ति के यथोचित पात्र बन पायें।

आप सदा स्वस्थ रहें, प्रसन्नचित्त रहें तथा आपका अन्तःकरण शुभ, धार्मिक – आध्यात्मिक बना रहे इन्ही सब मंगल कामनाओं के साथ नमस्कार। मंगल शुभकामनाएं। 

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।।  

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