हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था – विनोद कुमार शुक्ल के ये शब्द मेरे दिल को छू गए हैं। मैं ये आपके साथ बांट रहा हूं। इनमें एक अद्भुत गहराई और सारगर्भिता है। उम्मीद है ये आपको भी उतना ही प्रभावित करेंगे जितना इन्होंने मुझे किया है।

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था। व्यक्ति को मैं नहीं जानता था हताशा को जानता था। इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया और मैंने हाथ बढ़ाया।

मेरा हाथ पकड़ कर वह खड़ा हुआ। मुझे वह नहीं जानता था लेकिन मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था। हम दोनों साथ चलते हैं। दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे लेकिन साथ चलने को जानते थे।

इन लाइनों में वर्णित ‘हाथ बढ़ाना’ के भाव को आप कैसे समझते हैं? क्या यह सिर्फ शारीरिक संपर्क है या इसमें कोई गहरा अर्थ छिपा है?

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