रविवारीय प्रार्थना – अपने भीतर के ईश्वरीय अभाव को कम करना।

लगभग सभी मनुष्य एक अनोखी स्थिति में है। इस ‘स्थिति’ शब्द पर ध्यान दीजियेगा। मनुष्यों से नीचे पशुओं का संसार है। वे जैसे पैदा होते हैं, वैसे ही रहते हैं, उनमें कोई बदलाव नहीं होता। मनुष्यों से ऊपर बुद्धों का संसार है। वे जैसे बनना था, वैसे बन गए हैं, अब उनमें कुछ और बनने को शेष नहीं है। ज्यादातर लोग इन दोनों के बीच में है, इसलिए वह चिंतित रहते हैं। उन्हें जो बनना है, वह अभी बने नही हैं, और जो नहीं बनना थे, वह अभी हैं 🤭। बस इसलिए जीवन में तनाव है, खिंचाव है, हर तरफ पाखंड है, धोखा धड़ी है, लोभ लालच है, हर तरफ शोर शराबा है।

याद रखिये की हर समय हमारे सामने दो रास्ते होते हैं – एक रास्ता पशुता की ओर जाता है, जहाँ हम अपनी selfish desires (स्वार्थी इच्छाओं) और passions (जुनून) के वश में होकर lower instincts (निम्न वृत्तियों) का पालन करते हैं तथा दूसरा रास्ता देवत्व की ओर जाता है, जहाँ हम अपने higher self (उच्चतर स्व) को पहचानकर virtues (गुणों) का विकास करते जाते हैं और अंततः इस मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ सम्भवनाओं को साकार कर पाते हैं

ये बात आपको हास्यप्रद लगेगी लेकिन यही सच है की ज्यादतर हमारी चिंता और तनाव का मुख्य कारण यही है कि हमें पता है कि हमें क्या करना चाहिये, क्या पाना है एवं किस रास्ते पर चलना है, लेकिन ज्यादतर उसका उल्टा करते  हैं। बस यही विरोधाभास सारे विघ्न की जड़ है।

आप स्वयं ही सोचिये की अगर आप उस मुकाम पर पहुँच जाएँ जहाँ आपको पहुँचना था, वह बन जाएँ जो आपको बनना था और वह पा लें जो आपको पाना था, तो फिर रोने-धोने की क्या बात रह जाएगी? फिर किस वजह से आपके हाथों कोई पाप होगा?

बस यही याद दिलाना, बार बार याद दिलाना की असल मे आपको क्या बनना है या क्या पाना है। इस जीवन का लक्ष्य क्या है, क्या रहस्य है, मेरे रविवारीय लेख का मुख्य उद्देश्य होता है। मैं आशा करता हूँ कि ये लेख आपको पसंद आएंगे और वे आपके जीवन को सार्थक बनाने में आपकी थोड़ी मदद करेंगे।

आज मैं आपको पुनः याद दिलाना चाहता हूं कि अपने भीतर से, अपनी सोच से, विचारों से, अपने प्रत्येक कार्य से ईश्वरीय गुणों का स्वाभाविक प्रकटीकरण ही जीवन का परम लक्ष्य है। अपने भीतर ईश्वर के अभाव को घटाना यानी के नर से नारायण में पूरी तरह से स्वयं को रूपांतरण कर लेना ही हमारे जीवन का उच्चतम लक्ष्य है।

इसीलिए मेरे विचार में, अपनी सांसारिक प्रतिबद्धताओं का निष्ठा पूर्वक पालन करते हुए, अपने higher self (उच्चतर स्व) को पहचाने का प्रयास और सद्गुणों का निरन्तर विकास करना ही प्रार्थना है। अपनी selfish desires (स्वार्थी इच्छाओं) और passions (जुनून) पर नियंत्रण रखते हुए, सही रास्ते पर चलने का प्रयास ही सर्वोत्तम प्रार्थना है।

आज मैं अपने आराध्य प्रभु जी से प्रार्थना करता हूँ कि हमारे भीतर की पशुता में तेजी से कमी आये और दिव्यता में अधिक से अधिक बढ़ोतरी हो। प्रत्येक सूर्योदय आपको अपने लक्ष्य और संकल्पनाओं की संपूर्ति के नवीन अवसर प्रदान करता रहे और आप इस जीवन की श्रेष्ठ सम्भावनाओं को जल्द ही साकार कर पायें।

आप स्वस्थ रहें, आपकी आगे की यात्रा सुखद एवं मंगलमय हो, और आप निरंतर उन्नति के पथ पर अग्रसर रहें, इन्ही मंगलकामनाओं के साथ आपको प्यार भरा नमस्कार है 🙏

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।

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