रविवारीय प्रार्थना – हमारे प्रयास, हमारी सभी चेष्टाएँ जो हमें पूर्णता की प्राप्ति करवायें।

प्रियवर, आज इस रविवारीय लेख को लिखते हुए आपसे साझा करते हुए एक बार पुनः अत्यंत आनंद की अनुभूति हो रही है। आज मैं आपके साथ जीवन के एक महत्वपूर्ण पहलू पर विचार करना चाहता हूँ। जीवन तो हम सभी को मिला है, और यह अनवरत चल भी रहा है। परन्तु क्या हमने कभी यह विचार किया है कि यह जीवन यात्रा किस दिशा में जा रही है? क्या ये ठीक दिशा में चल रही है या नही?🤔

हमें यह याद रखना होगा कि हम सभी की जीवन यात्रा वास्तव में तो असफलता से सफलता की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और व्यर्थ से सार्थक की ओर की यात्रा होनी चाहिये। संक्षेप में, यह पदार्थ से परमात्मा की ओर एक यात्रा होनी चाहिये।

या यूं कहें कि ये यात्रा अपूर्णता से पूर्णता की ओर होनी चाहिये, अशुद्धि से शुद्धि की ओर, घृणा से प्रेम की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, पीड़ा से आनंद की ओर और दुर्बलता से अनंत शक्ति की ओर होनी चाहिये। आपकी यात्रा किस ओर है ये आप जाने 🤫🤫??

क्योंकि ये बात केवल अपने लाभ की कामना, छीना-झपटी में परस्पर संघर्षरत और मात्र निजी स्वार्थ की पूर्ति हेतु प्रयासरत रहने वालों लोगों की समझ में आना तो नामुमकिन है, उनसे ये अपेक्षा करना भी नितांत मूर्खता होगी। लेकिन अगर आप यदि इस लेख को पढ़ रहे हैं तो निश्चित ही आप तो अपने जीवन में स्पष्टता, शांति, परमानंद और अपने परम लक्ष्य – पूर्णता की खोज में हैं, और मुझे पूरा विश्वास है कि यह लेख आपकी सहायता जरूर करेगा।

जैसे एक बीज तब तक पीड़ा का अनुभव करता है जब तक कि वह एक विशाल वृक्ष नहीं बन जाता, उसमें सुंदर फूल नहीं खिलते और स्वादिष्ट फल नहीं लगते, वैसे ही हम सभी के भीतर परमात्मा होने की छिपी हुई संभावना को साकार करने की एक तीव्र पीड़ा होनी चाहिए। हर मनुष्य के भीतर परमात्मा होने का एक बीज है, और जब तक हममें से परमात्मा की पूर्णता प्रकट नहीं होने लगती, तब तक हमारी यात्रा अधूरी रहती है, या यूँ कहें कि उस दिशा में चलती ही नहीं जिस दिशा में उसे जाना चाहिए। हमारे भीतर का बीज तड़पता रहता है, बेचैन रहता है, और पीड़ा का अनुभव करता है क्योंकि उसमें भी किसी भी अन्य सामान्य बीज की तरह ही अंकुर फूटने चाहिए, अंकुर फैलने चाहिए और उसे पूर्णता को प्राप्त करना चाहिए। पूर्ण होकर ही तृप्ति, शांति, अर्थ और जीवन का सही अभिप्राय उपलब्ध होते हैं।

यदि आप मेरे इस बीज वाले उदाहरण से सहमत हैं और मानते हैं कि मनुष्य भी एक बीज है, तो उसका पूर्ण वृक्ष बनना यानी कि अपने भीतर के परमात्मा को प्रकट करना ही जीवन का परम लक्ष्य है। हमारी जीवन यात्रा भी बीज से वृक्ष की यात्रा के समान है। हमारे सभी प्रयास, हमारी सभी चेष्टाएँ, हमारी प्रार्थनाएँ न सिर्फ हमें शारीरिक रूप से, बल्कि आध्यात्मिक, भावनात्मक और मानसिक रूप से भी पूर्णता की ओर ले जाने में सक्षम होनी चाहिए। मुझे उम्मीद है कि ये लेख आपकी यात्रा को सही दिशा प्रदान करेगा और आपके जीवन को पहले से अधिक सार्थक बनायेगा।

आज मैं अपने आराध्य प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि उनके अनुग्रह और आशीर्वाद से आपके भीतर के बीज तेजी से अंकुरित हों और पुष्पित हों। आपकी अपने-अपने तरीके से की गई उपासना, आराधना, प्रार्थना, स्तुति और समस्त प्रयास वास्तव में आपकी अपूर्णता को कम करें और आपको पूर्णता की ओर अग्रसर करें। संसार की प्रत्येक उपलब्धि को अपने पुरुषार्थ से अर्जित करते हुए आप में शीघ्र ही परमात्मा की पूर्णता का प्राकट्य हो।

आप अपनी पूरी जीवन यात्रा में खुश रहें, स्वस्थ रहें, आनंदित रहें ऐसी मंगलकामनाओं के साथ आपको प्रेम भरा नमस्कार 🙏

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।।

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