रविवारीय प्रार्थना –  विवेकपूर्ण कर्तव्य पथ पर खुशी से लगातार बढ़ना और मन को इतना शुद्ध रखना कि बुरे विचार पैदा ही न हों और यदि हो भी, तो उन्हें कर्म में बदलने का अवसर न मिले।

प्यारे दोस्तों, आज रविवार है और इस रविवारीय लेख में मैं एक बार फिर अपने श्रेष्ठ जनों से सुनी और समझी कुछ सीधी-सादी लेकिन बहुत गहरी बातें आपसे साझा करना चाहता हूँ।

पहली बात तो यह है कि: आज जिस किसी भी इंसान में आपको थोड़ी सी भी अच्छाई, थोड़ी सी भी उम्मीद की किरण या रोशनी दिखाई दे रही है ना, याद रखना, एक दिन उसी के भीतर परमात्मा की पूरी रोशनी उतरेगी। जो लोग खुद अंधेरे में डूबे हैं और दूसरों के जीवन में भी अंधेरा फैला रहे हैं, उनसे उजाले की उम्मीद रखना बेकार है। इसलिए, हर   थोड़ी सी रोशनी को और छोटी से छोटी अच्छाई को पहचानना और उसे आगे बढ़ने का हौसला देना भी एक प्रकार की हमारी प्रार्थना होगी।

दूसरी बात ये है कि: यदि आप जीवन के उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति, असीम बौद्धिक संपदा और आत्म-सामर्थ्य का जागरण चाहते हैं, तो इसका मार्ग अपने आज से, अपने आसपास के लोगों और वस्तुओं से प्रेम करना, अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाना, और लगातार आत्म-विकास के लिए जागरूक, मेहनती और विचारशील बने रहना ही है। ये समझ बनाये रखना और इस दिशा में प्रयासरत रहना ही हमारी प्रार्थना होगी।

तीसरा विचार यह है कि अपने आराध्य देव की सामान्य पूजा-पाठ सरल है और उसका लाभ भी अवश्य मिलता है। किंतु, जो व्यक्ति प्रभु को समर्पित जीवनशैली अपनाता है, सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है, प्रसन्न रहता है, और अधिकाधिक श्रेष्ठता एवं उच्चता के मार्ग पर चलने का प्रयास करता है, तथा नकारात्मकता और अज्ञान से दूर रहता है, उसे कहीं अधिक लाभ प्राप्त होता है। ये समझ बनाये रखना और इस दिशा में निरन्तर प्रयासरत रहना ही हमारी प्रार्थना होगी।

इसलिए, सच्ची प्रार्थना का मतलब सिर्फ हाथ जोड़कर औपचारिकता पूरी करना नहीं है। इसका सही अर्थ है – विवेकपूर्ण कर्तव्य पथ पर प्रसन्नतापूर्वक, निरंतर और साहसपूर्वक आगे बढ़ना, और अपने मन को इतना निर्मल रखना कि बुरे विचारों की उत्पत्ति ही न हो और यदि हो भी, तो उन्हें कर्म में बदलने का अवसर न मिले।

आज मैं अपने आराध्य प्रभु जी से प्रार्थना करता हूँ कि वो इस जीवन की भाग दौड़ में हमारे पैरों में सदा गति बनाये रखें। इतनी समझ और शक्ति प्रदान करें कि जब कभी हमारे प्रारब्ध के कर्मफल उपस्थित हों तो उन्हें धैर्य पूर्वक सह सकें – स्वीकार कर सकें और आत्मिक उत्कर्ष के लिए पुरुषार्थ करते हुए निराशा को कभी हावी न होने दें।

आज मेरी उनसे यह भी विनती है कि वो हममें ऐसी काबिलियत, क्षमता और ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करें जिससे हमारा कुछ खास बनने और करने का सपना जल्दी पूरा हो सके। हमारी अपूर्णता और कमियाँ तेजी से कम होती चली जायें और हमारी खुशियों, आनंद और पूर्णता में वृद्धि होती चली जाये तथा हमारे अंतःकरण की दिव्य ज्योति शीघ्र ही प्रस्फुटित होकर सबको आलोकित करने लगे।

आप सदैव स्वस्थ रहें, आनंदित रहें, इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ स्नेहपूर्ण नमस्कार 🙏

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।

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