रविवारीय प्रार्थना – प्रत्येक में परमात्मा को देखना और हर घटना को उनके मंगलमय विधान के रूप में स्वीकारना।

क्या आपने कभी सोचा है कि यह दुनिया इतनी कटु, कड़वी, बेमुरव्वत सी क्यों प्रतीत होती है 🤔? अक्सर कसूर दुनिया का नहीं, बल्कि हमारी अपनी आँखों का होता है — उस नज़र का जो सिर्फ दाग़ ढूंढती है, जो हमेशा नुक्स निकालती है। हम उस परम सत्य को बिसरा देते हैं कि यह समस्त सृष्टि परमात्मा का ही स्वरूप है। जो कुछ भी हमारे सामने है — चाहे वो पेड़ हों, नदियाँ हों, पहाड़ हों, या फिर हर एक व्यक्ति, चाहे वो हमें अच्छा लगे या बुरा, चाहे वो हमे भाए या न भाए — ये सभी उसी दिव्य सत्ता की अद्भुत रचनाएँ ही तो हैं। ये सब यूँ ही निरुद्देश्य नहीं रचे गए हैं, हर वस्तु में उनका कोई विशेष संकेत है, हर घटना के पीछे कोई गूढ़ प्रयोजन छिपा है। और इन सब से एकत्व स्थापित करना, प्रत्येक में परमात्मा को देखना और हर घटना को उनके मंगलमय विधान के रूप में स्वीकारना ही तो हमारे यंहा आध्यात्मिक उत्कृष्टता का, बुद्धत्व का प्रतीक बताया गया है।

जिस क्षण यह जीवन-बोध आपके भीतर उतर जायेगा, उसी पल देखना—हर द्वंद्व विलीन हो जाएगा, और यह सारा अस्तित्व अचानक कितना मधुर, कितना आनंदमय लगने लगेगा। यह मात्र एक विचार नहीं, यह आपके भीतर घटित होने वाला महा-परिवर्तन है—एक ऐसा रूपांतरण जो आपकी आत्मा को परम आलोक से भर देगा, आपकी सोई हुई दिव्य चेतना, आपके सामर्थ्य, आपकी छुपी हुई शक्ति को जाग्रत कर देगा।

जरा सोचिए, ज़रा कल्पना कीजिए, अगर हम हर किसी में ईश्वर की झलक देखना सीख लें, उनसे निश्छल भाव से प्रसन्न होना सीख लें, और उनकी सच्चे मन से सराहना करना अपना स्वभाव बना लें। फिर देखिए, आज जो चीज़ें हमें दोष देखने के कारण काँटे की तरह चुभती हैं—वो चाहे कोई परिस्थिति हो, कोई वस्तु हो, या कोई व्यक्ति—वे सब फूलों की तरह मन को लुभाने वाली लगने लगेंगी।

सच मानिये, जिस दिन यह दुनिया हमें प्यारी लगने लगेगी, उसमें कमियाँ और बुराइयाँ कम दिखाई देंगी, उसी क्षण हम पूर्णतः स्वस्थ हो जाएंगे। हमारे हृदय से द्वेष और घृणा का भाव पूरी तरह मिट जाएगा। तब हम जीवन की हर दिशा और हर वातावरण में असीम प्रसन्नता का अनुभव करने लगेंगे। दुःख-क्लेश और क्रोध-क्षोभ का कोई भी कारण शेष नहीं रह जाएगा, और जीवन एक अद्भुत उत्सव बन जाएगा।

इसीलिये, प्रत्येक में परमात्मा को देखना और हर घटना को उनके मंगलमय विधान के रूप में स्वीकारना ही सच्ची प्रार्थना है। यह दुनिया हमारी अपेक्षाओं के हिसाब से नहीं बनी है, दोस्त। यह तो पूर्णतया एक ईश्वरीय लीला है, बस। यहाँ हर पत्ता सिर्फ और सिर्फ उसी की मर्ज़ी से हिलता है।

इसीलिए प्रार्थना में किसी शिकायत का क्या काम? या दुनिया मे कुछ मनमुताबिक फेरबदल या बदलने की मांग का भी क्या काम 🤭? बिल्कुल भी नही। असली प्रार्थना तो बस इतनी सी होनी चाहिये कि: जो है, उसी के साथ हमें एक लय में जीना आ जाये। उस परम सत्ता की लीला को स्वीकारना आ जाये, पूरी तरह से। बस उस लीला में अपना सर्वश्रेष्ठ देना और करना आ जाये, अपना पूरा योगदान देना आ जाये बगैर रोये-पिटे, बगैर किसी ‘किंतु-परंतु’ या “शर्त” के 🕺।

शायद यही एकमात्र मार्ग है जो हमें जीवन में पूर्णता और परम आनंद दे सकता है। और कोई दूसरा मार्ग है ही नहीं। यह कोई रस्म या कोई कर्मकांड नही है। ये मसला केवल समझ और हमारी चेतना के जागरण का है। जब हम इस गहरी स्वीकार्यता में डूब जाते हो, तभी पूर्ण आनंद खिलता है। इसके बिना, यह जीवन-यात्रा अधूरी है, खालीपन से भरी हुई। अब ये आपके उप्पर है कि हम क्या चुनते हैं खालीपन या पूर्णता को 💫?

हर रविवार मैं जो भी लिखता हूँ, उसका असली मतलब तभी है जब आप उसे थोड़ा दिल से लें; वरना मुझे भी पता है ये सब बेतरतीब और बेमानी ही लगेगा। मेरे प्यारे, ये कोई महान विद्वान के लिखे किसी महान ग्रंथ का हिस्सा थोड़े ही हैं 🤣। बस मेरी अपनी ऊटपटांग अनुभूतियाँ हैं—जैसे खदान से निकले अनगढ़ हीरे, जिन्हें तराशा नहीं गया है, मैं तराश सकता भी नही हूँ। जब जो मन किया, जो बढ़िया सुना – पढ़ा या लगा, लिख दिया। अब आप इसे कैसे देखते हैं, आपकी मर्जी। और वैसे भी, ये सब आपके लिए है भी नहीं; ये तो बस मेरी एक छोटी सी कोशिश है, अपने जीवन, परमात्मा और अध्यात्म को अपनी समझ से समझने की। और हाँ, ये उन आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है जिनके पास श्री रामायण, महाभारत या अन्य हमारे अन्य महान ग्रंथ पढ़ने या समझने का एक क्षण भी नही होगा। आपने तो ये सब अवश्य पढ़े होंगे… पढ़े हैं ना? 🤭🤭 बस यूँ ही पूछ लिया, क्योंकि मुझे पता है कि आपके पास तो समय की कभी कोई कमी रही नहीं, है ना 🤭🤪??

आज मेरे आराध्य प्रभु से प्रार्थना है कि आपके जीवन का मुख्य उद्देश्य – ब्रह्म के साथ एकत्व और अनंत शांति तथा परम आनंद की प्राप्ति – शीघ्र ही पूरा हो। आज बस इसी एक मंगल शुभकामना के साथ आप को एक बार पुनः प्यार भरा नमस्कार 🙏

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।।

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