रविवारीय प्रार्थना: हंस की तरह केवल मोती चुनना न कि कौवे या बगुले की भांति कुछ भी।

जैसा कि आप जानते ही हैं, मुझे  हर रविवार आध्यात्मिक विषयों पर मंथन करके उसे आप तक सरल और प्रभावी तरीके से पहुँचाना बहुत अच्छा लगता है। इसलिए आज एक बार फिर वही पुरानी बातें, पुराने मुहावरे, लोककथाएँ, गाथाएं और उनका विश्लेषण या यूं  कहें कि सारांश मेरे अंदाज़ और शब्दों में पेश है:

आप बुरा मत मानिएगा, पर हम में से कुछ लोग (कुछ नहीं बहुत सारे 🤭) अपनी ज़िंदगी कौवों की तरह गुज़ार देते हैं। कौवे जो कहीं भी चोंच मारते हैं। समझ गए न 🤣। मतलब, उनकी पूरी ज़िंदगी बस छोटे-मोटे निम्नस्तरीय स्वार्थों को पूरे करने में ही खप जाती है। जिस अनमोल जीवन को पाने के लिए देवताओं को भी तरसना पड़ता है, उसे ये ‘समर्थ, शक्तिशाली और बुद्धिमान’ लोग ऐसे ही बर्बाद कर देते हैं। अब ऐसे लोग किस मुँह से कहेंगे कि उन्होंने ज़िंदगी का सही इस्तेमाल किया? अफ़सोस। इन ‘ज्ञानी’ लोगों को आखिर में सिर्फ़ पछतावा ही मिलेगा। जब तक इन्हें अपनी भूल का एहसास होगा, तब तक तो नाव निकल चुकी होगी और फिर सिर्फ़ अपना सिर धुनने के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा 😤

ज़िंदगी जियो, हँस की तरह।

अक्सर, हमें नींद से जगाने और ये सब समझाने यानी के हमारी बुद्धि की बत्ती जलाने के लिए, कोई न कोई किसी न किसी रूप में रोज़ हमारे दिल दिमाग के दरवाज़े पर दस्तक देता ही रहता है। वास्तव में तो पूरी कायनात ही शायद इस कोशिश में लगी है कि आपको नींद से जगाकर बोले, “अरे भाई साहब/साहिबा, उठिए, चिड़िया चहचहाने लगी, सूरज निकल आया, अब जग जाईए।” पर ये उठने-जागने वाली बातें आप तक कहाँ ही और कितनी हीं पहुँचती हैं, ये तो राम ही जानें 🤣। लेकिन इस प्रकृति की तरह मेरा प्रयास तो हमेशा जारी रहेगा, चाहे आप जागें या खर्राटे भरते रहें।

आपने अक्सर सुना होगा कि हंस मोती खाते हैं। अब इसका मतलब यह तो नहीं कि वो सच में गहने वाले मोती खाते हैं। यह तो बस एक मज़ेदार कहावत है, जो हमें यह समझाती है कि जो लोग वास्तव में बुद्धिमान होते हैं, उन्हें सही चीज़ों की पहचान होती है, उनका लक्ष्य होता है: मानसरोवर तक पहुंचना, ज्यादा से ज्यादा मोती ढूंढने, चुगने। वे छोटी-मोटी चीज़ों से राज़ी नहीं होते। जो मामूली चीज़ों से ही ख़ुश हो जाता है, वह कभी बड़ी उपलब्धियां हासिल नहीं कर पाता। जिसने नदी-नालों का पानी पीकर ही अपनी प्यास बुझा ली, वह भला मानसरोवर तक कैसे पहुँचेगा? उसे तो इसकी ज़रूरत ही नहीं महसूस होगी।

हम तो रह रह कर आपको याद दिलाते ही रहेंगे कि आप हंस हैं, कौवे नहीं 🫣। आपकी खासियत ही ये है कि आप मोती पहचानते हैं और उन्हीं को चुनते हैं, कंकड़-पत्थर नहीं। इसीलिए एक दिव्य, सुंदर सफ़ेद हंस की तरह, आपका ध्यान सिर्फ़ मोतियों पर होना चाहिए, केवल मोतियों पर। अब बस यही समझ बनाए रखना है और श्रेष्ठ बनने, श्रेष्ठ करने और श्रेष्ठ पाने का लगातार प्रयास करना ही सही प्रार्थना है।

आज मेरे आराध्य प्रभु जी से यही प्रार्थना है कि आपकी समझ, क्षमता और सक्रियता इतनी बढ़े कि आप अपने जीवन रूपी मानसरोवर में गहरे उतर कर ज्यादा से ज्यादा मोती चुन सकें।

आप सदा स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें और आपका आने वाला हर नया दिन शुभ और मंगलमय हो. इन्हीं सब शुभकामनाओं के साथ आप को प्यार भरा नमस्कार 🙏🏼

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।।

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