Giving Yourself More Opportunities To Feel Proud..
आज मैं एक लेख पढ़ रहा था जिसको पढ़ कर एक सवाल मन मे आया कि क्या मात्र मनुष्य रूप में जन्म लेने से ही कोई मनुष्य हो जाता है? इसमें मुझे जरा शक है।
सदियों-सदियों से हम सभी को ज्ञात है कि हम सब ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना हैं जिसमे एक अजर अमर आत्मा है जो उन्ही का एक अंश है। पर हम सब इस बात को मानते हैं, इसमें मुझे जरा सन्देह है।
मैं देखता हूँ कि ज्यादातर लोग अभी भी बीज की भांति ही हैं, वृक्ष की भांति नहीं। यानी के अभी एक संभावना के रूप में ही हैं, वास्तविकता के रूप में नही और हम सब जानते हैं कि संभावना और वास्तविकता के बीच कितना बड़ा अंतर होता है।
सम्भावना इस बात की है कि आप चाहे तो मनुष्य जन्म के बावजूद एक पशु की भाँति अपना जीवन व्यतीत कर दें या तथागत हो जायें- ब्रह्मरूप हो जायें। दोनों संभावनाएं पूरी पूरी हैं। आप पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो – ऊपर जाने या नीचे जाने का निर्णय केवल आपका है। निम्न स्तर के आचरण, व्यवहार और कर्म कर के आप स्वंय को एक जानवर, दुष्ट एवं दुराचारी बना सकते हैं और चेतना का उत्थान कर के, सत्कर्म कर के, उनके बताये गुण-कर्म-स्वभाव का पालन कर के स्वंय को उनका सगुण रूप बना सकते हैं।
स्वर्ग के देवी देवता तक जिस मनुष्य जीवन की याचना करते हैं, उस मनुष्य जीवन को पाकर भी अगर आप सच मे मनुष्य होने से चूक गये तो फिर क्या ही हो सकता है।
इसीलिए मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि अपने शारीरिक, सांसारिक अस्तित्व के साथ साथ जो आपका वैदिक, आत्मिक और अलौकिक स्वरूप है, उसे जानने की चेष्टा प्रार्थना है। आप केवल एक शरीर नही बल्कि आत्मा हैं, उनका एक अंश है। आपका शरीर केवल संसार में व्यवहार करने का साधन है। कर्ता और भोक्ता तो असल मे आत्मा है, ये सच्चाई मानना ही हमारी प्रार्थना है।
क्योंकि अगर आप इस सच्चाई को जान गए और मान गए तो आपकी नियत मलिन नही रह पाएगी, आपसे एक दूसरे के गले नही काटे जाएंगे, छल कपट नही होगा आपसे, आप लूट-खसूट नही कर पायेंगे, किसी का अनादर नही होगा आपसे तथा आपकी पशुता खत्म हो जायेगी। सबसे बड़ी बात आप और अधिक अचेतन नही रह पायेंगे।
पूरी तरह से जिम्मेदार व्यक्ति को अपने लौकिक और अलौकिक दोनों स्वरूपों का ज्ञान रहना चाहिये और यही समझ बनाये रखने का प्रयास प्रार्थना है। अपने वर्तमान मनुष्य जीवन तथा अपने अलौकिक मूल कर्तव्यों के प्रति चौकन्ना रहना प्रार्थना है। अपने हर संकल्प, सम्बन्ध, सम्पर्क को लौकिक से अलौकिक बनाने में सलंग्न रहना प्रार्थना है। लौकिक वृत्तियों की बजाय अलौकिक वृत्तियों को धारण करना प्रार्थना है। अपनी वाणी में, अपने विचार, व्यवहार तथा कर्म में लौकिक से अलौकिक हो जाना प्रार्थना है।
वास्तव में अपने अचेतन रूप को चेतन स्वरूप में रूपांतरित करना प्रार्थना है। निम्नता को उच्चता में रूपांतरित करने का निरन्तर प्रयास ही प्रार्थना है।
सब मंगल कामनाओं को पूर्ण करने वाले मेरे आराध्य प्रभु से आज मेरी प्रार्थना है कि जल्द ही आपकी चेतना जागृत हो जाये, आपका जीवन “लौकिक से अलौकिक’ में परिवर्तित हो जाये जिससे आप को भी अन्य महान लोगों की भांति देवत्व, परम् ज्ञान, आनंद, आलोक तथा सफलता प्राप्त हो सके।
अत्यंत खुशहाल और सौभाग्यशाली जीवन की कामनाओं के साथ साथ मैं आज उनसे ये भी प्रार्थना करता हूँ कि आप सदैव स्वस्थ रहें और दीर्घायु हों। मंगल शुभकामनाएं 💐
श्री रामाय नमः। श्री राम दूताय नम:। ॐ हं हनुमते नमः।।