रविवारीय प्रार्थना – श्रेष्ठता, शूभता, उच्चता एवं महानता को नमन करना ही प्रार्थना है।

हम सब हर रोज किसी न किसी रूप में परमात्मा की स्तुति तो करते हैं लेकिन हम इस बात का खयाल नही रख पाते हैं कि ईश्वर श्रेष्ठता, शूभता, उच्चता एवं महानता का ही एक रूप है। जिस भी आयाम में ये जहां भी ये प्रकट होते हैं वहां ईश्वर की झलक निकटतम हो जाती है, उनकी अनुभूति आसान हो जाती है।

ईश्वर तो सब जगह मौजूद ही हैं, उस पत्थर में भी जो रास्ते के किनारे पड़ा है। लेकिन वही पत्थर जब एक सुंदर मूर्ति बन जाता है, तब उनकी अनुभूति होना आसान हो जाता है। ये बात सिर्फ समझने के लिये है।

श्रेष्ठता, उच्चता, महानता का अर्थ है, उनकी अभिव्यक्ति, उनका एक्सप्रेशन, किसी भी दिशा में और किसी भी आयाम में जो परम उत्कर्ष है, जिसके पार नहीं जाया जा सकता है – बस वही आखिरी सीमा उनकी मौजूदगी है, अभिव्यक्ति है – यंही अधिकतम ईश्वर प्रकट होता है या हो सकता है। । चाहे वह सौंदर्य हो, चाहे वह सत्य हो, ईमानदारी हो, सामर्थ्य हो या किसी के पराक्रम की पराकाष्ठा, चाहे कोई भी हो आयाम, जहां भी जीवन अपनी अत्यंत आत्यंतिक स्थिति को छू लेता है, अपने परम शिखर को पहुंच जाता है, बस वो कैलाश पहुंच जाता है – गौरीशंकर को छू लेता है, उन्हें प्राप्त हो जाता है।

श्रेष्ठता बहुत से रूपों में प्रकट होती है। अगर ठीक से समझें, तो श्रेष्ठा के सभी रूप परमात्मा के रूप ही हैं। और जहां भी श्रेष्ठतर दिखाई पड़े, वहां परमात्मा दिख जाता है। चाहे कोई एक संगीतज्ञ अपने संगीत की ऊंचाई को छूता हो और चाहे कोई एक चित्रकार अपनी कला की अंतिम सीमा को स्पर्श करता हो, चाहे कोई बुद्ध अपने मौन में डूबता हो – चाहे कोई भी हो दिशा हो, जहां भी महानता है, जहां भी जीवन उच्चता को छूता है, वहीं परमात्मा अपनी सघनता में प्रकट होता है

मैं फिर कहता हूं कि जहां भी कोई चीज श्रेष्ठता को छूती है, सर्वोत्तमता, महत्तमता और उत्कृष्टता को छूती है, वहीं उनकी झलक मिलनी शुरू हो जाती है। इसीलिये जहां भी श्रेष्ठता या महानता की कोई थोड़ी सी भी झलक मिले तो उसे प्रणाम करना, उसे स्वीकार करना ही एक मायने में हमारी प्रार्थना है।

लेकिन साधरणतः कुछ लोगों के लिये किसी की श्रेष्ठता को स्वीकार करना बड़ा कठिन है। कोई श्रेष्ठ है, इसे स्वीकार करने में बड़ी तकलीफ है। कोई निकृष्ट है, इसे स्वीकार करने में बड़ी राहत है। अगर कोई आदमी आपसे आकर कहे कि फलां आदमी बेईमान है, चोर है, बेकार है तो हम बड़ी प्रफुल्लता से स्वीकार कर लेते हैं। कोई आकर कहे कि फलां आदमी साधु है, सज्जन है, संत है, या सही है तो आपके भीतर स्वीकार का भाव बिलकुल नहीं उठता। आप कहते हैं कि तुम्हें पता नहीं होगा अभी, पीछे के दरवाजों से भी पता लगाओ कि वह आदमी सच मे साधु है क्या?

जब हमें पता चलता है कि दुनिया में बहुत बेईमानी हो रही है, चोरी हो रही है, धोखा दिया जा रहा हैं, तो हमारी छाती फूल जाती है। तब हमें लगता है, कोई हर्ज नहीं, कोई मैं ही बुरा नहीं हूं सारी दुनिया बुरी है। और इतने बुरे लोगों से तो मैं फिर भी बेहतर हूं। अगर आप गौर से देखेंगे तो पायेंगे कि जब भी हमें कोई बुरा दिखाई पड़ता है, हम बड़े हो जाते हैं। जब भी हमें कोई भला दिखाई पड़ता है, हम छोटे हो जाते हैं।

याद रखिये की जो अपने से बड़े को देखने में असमर्थ है, वह परमात्मा को समझने में भी असमर्थ है। इसलिए जहां भी कुछ बड़ा दिखाई पड़ता हो, श्रेष्ठ दिखाई पड़ता हो, कोई फूल जो दूर आकाश में खिलता है बहुत कठिनाई से, जब दिखाई पड़ता हो, तो अपने इस मन की बीमारी से सावधान रहना। श्रेष्ठता को स्वीकार करने से उसे नमन करने से ही आगे की गति सम्भव हो सकती है। परमात्मा की सर्वव्यापकता, अनंतता, अमरता का अनुभव तभी संभव है …जब आप स्वयं श्रेस्ठ होकर जियें, आपकी नियत, सोच, आपके विचार और आपके कर्म एकदम अच्छे और शुभ हो जायें और आप स्वभाविक रूप से दूसरों की श्रेष्ठता को नमन करने लगें।

मैं आज मेरे आराध्य प्रभु जी से प्रार्थना करता हूँ कि आपके मन-बुद्धि शुद्ध एवं पवित्र हो जायें, आपके सोच-विचार और कर्म की दिशा बदल जाये जिससे आपके संचित पुण्य बढ़ सकें औऱ आपके भाग्य की रेखाएं बदल सकें। आप इतने संवेदनशील एवं विनम्र हों जायें कि सभी की उच्चता को स्वीकार कर सकें। आपके सुप्त पड़े हुऐ गुण एवं आपकी अपनी सोई हुई श्रेष्ठता, दिव्यता, उच्चता जागृत हो जाये जिससे आपकी भौतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति की राह जल्द ही प्रशस्त हो सके।

आप को शतायु, स्वस्थ और सशक्त जीवन के लिये मंगल शुभकामनाएं 💐

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।

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