रविवारीय प्रार्थना – आत्म दर्शन और आत्मा में उस परमात्मा के दर्शन।

आज का रविवारीय लेख उपनिषदों के इस महावाक्य से प्रेरित है – “तत्त्वमसि”, अर्थात “तू ही वह है”। यह वाक्य हमें बताता है कि हम सभी ब्रह्मांड के एक अंश हैं, एक ही चेतना के विभिन्न रूप हैं।

हम जो स्वयं को समझते हैं उससे कंही अधिक हैं लेकिन अपनी सोच, भावनाओं, इच्छाओं और विचारों का जंजाल और शोरगुल हमसे वैसी ही क्रियायें करवाता रहता है जैसे बन्दर वाला बन्दर को बाँध कर करवाता रहता है। और बन्दर के जैसे गुलाटियां मारने को ही हम अपना सहज कर्म मान लेते हैं। हम इस जीवन मे कितने महान कार्य कर सकते थे ये हमें याद ही नही रहता है।

ये बात समझने के लिये किसी भी शास्त्र, दर्शन या धर्म को जानने की बहुत जरूरत नही है कि हमें इस जीवन के बाद कोई मोक्ष या मुक्ति नही पानी है, बल्कि जीते जी अपने ईश्वरीय अस्तित्व को, उस सनातन चेतना को धारण करना है और ये कोई महानता का कार्य नही है.. ये हमारे सहज कर्म का स्वाभाविक हिस्सा बन जाना है…

हमारे सन्तों ने, महापुरुषों ने, पुराणों ने तरह-तरह के उपाय, अनेक प्रकार के साधन बताये हैं जिससे आप आत्म साक्षात्कार और आत्म-शोधन की प्रक्रिया प्रारम्भ कर सकते हैं। लेकिन मेरा ये मानना है कि आप केवल ये जानें, महसूस करें कि आप कितने मूर्ख थे की आप क्या बन सकते थे, क्या हो सकते थे और क्या क्या कर सकते थे अगर स्वयं को जान पाते, अगर जो जानते थे उसको अगर हर शब्द, विचार और कर्म में प्रकट कर लेते तो।

इसीलिए स्वयं को लगातार अज्ञानता, ढोंग-पाखण्ड की और धकेलने की बजाय, बन्दर की तरह उछल-कूद करने की बजाये अपने स्वधर्म को पहचानने और आत्मस्वरूप को जानने और जगाने का प्रयास ही प्रार्थना ही है।

आज मेरे आराध्य प्रभु जी से प्रार्थना है कि हम सब उनकी कृपा से आत्मिक जागरण की ओर प्रेरित हों जिससे जल्द से जल्द हमें आत्म दर्शन और आत्मा में उस परमात्मा के दर्शन हो पायें।

उनसे आज ये भी प्रार्थना है कि हम सब सुखी रहें, रोगमुक्त रहें और प्रतिदिन मंगलमय घटनाओं के साक्षी एवं प्रतिभागी बनें। मंगल शुभकामनाएं 💐

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।।

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