रविवारीय प्रार्थना – हृदय प्रेम से भरा रहे, हर कदम नृत्य करे और हर शब्द एक मधुर गीत बन जाए।

यह एक गहरा और विचारणीय प्रश्न है कि जब विश्व भर में हर धर्म, दर्शन और विज्ञान का मूल उद्देश्य यही है कि मनुष्य को स्वर्गिक अनुभव, शांति, प्रेम और आनंद की अधिक से अधिक अनुभूति हो। फिर यह कैसे संभव है कि कुछ लोग इसके विपरीत, घृणा, अशांति और दुख की कामना करते हैं या ऐसे कृत्यों में संलग्न होते हैं जो इन नकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा देते हैं 🤔? यह विरोधाभास हमें सोचने पर मजबूर करता है कि मानवीय स्वभाव की कौन सी जटिल परतें इस सार्वभौमिक इच्छा के विपरीत दिशा में ले जाती हैं।

आइये आज 117वें दिन यही चर्चा करते हैं, सोचते हैं। लेकिन मैं एक बात बिल्कुल स्पष्ट कर दूं कि आज का यह रविवारीय लेख उन चंद लोगों के लिए बिल्कुल नही है जो इंसान होने का ढोंग तो करते हैं, पर भीतर से हैं नही। बिल्कुल नहीं। मैं तो आज उन लोगों पर लिखना चाहता हूँ जो भीतर से जागृत हो चुके हैं। जिन्होंने इस जीवन को एक अनमोल उपहार के रूप में पहचान लिया है। वे जो हर सुबह सूरज की पहली किरण का अभिवादन करते हैं और हर रात तारों की चादर ओढ़कर कृतज्ञता से भर जाते हैं। वे जो हर पल यह जानते हैं कि परमात्मा उनके भीतर ही साँस ले रहा है। जिनके हृदय में यह धड़कन है कि कहीं भूल से भी कोई बुरा कर्म न हो जाए, कहीं भूल से भी कोई कटु शब्द न निकल जाए।

देखो तो इस जीवन की – सृस्टि की सुंदरता को! ये रंगीन फूल, ये बहती नदी, ये चमकता सूरज, ये तारों से भरी रात… यह सब किसका उत्सव है? यह आपके और मेरे अस्तित्व का ही तो उत्सव है। और हम सबको भी इसी उत्सव में शामिल होना है, जीवन का उत्सव मनाना है। ये इतना कठिन क्यों है? मेरे ये विचार या लेख अकेले मेरे नहीं हैं। सत्य तो ये है कि ये सब पहले से ही कहे और लिखे जा चुके हैं; मैं तो बस उन्हें दोहरा भर रहा हूँ।

यदि कोई मुझसे पूछे कि इस सब के बावजूद इन चंद कुछ लोगों में व्याप्त इस नफरत, उदासी, डर या हाथों में उठे हथियारों का क्या कारण है, तो मैं कहूंगा कि भय, अज्ञानता, मूर्खता, अविश्वास, गलतफहमी या राजनीतिक कारण तो हैं ही हैं, लेकिन उससे भी बड़ा कारण है उनके भीतर का संगीत खो जाना। उन्हें अपनी ही साँस बोझिल लगने लगी है। उनके पास नाचने, गाने और उत्सव मनाने का कारण समाप्त हो गया है। जीने का अर्थ और वास्तविक उद्देश्य ही धूमिल हो गया है।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि यदि अधिक से अधिक लोग स्वयं में आनंदित हो जाएँ, नृत्य कर सकें, गा सकें, अपनी उपस्थिति और अपने अस्तित्व का उत्सव मना सकें, तो इन मुट्ठी भर उन्मादी लोगों के लिए अशांति फैलना असंभव हो जाएगा।

इसीलिए स्वयं में प्रसन्न रहना, आत्म-संतुष्ट रहना, उत्सवमय होना और उत्सव का वातावरण बनाए रखना भी एक प्रकार की प्रार्थना ही है। मेरा अटूट विश्वास है कि रोते-कलपते, दुखी रहते हुए और दूसरों को पीड़ा पहुँचाकर कभी किसी बकुण्ठ की प्राप्ति नहीं होगी, न ही उस परम शक्ति (जिसमें भी आप विश्वास रखते हैं) का साक्षात्कार होता है। वास्तव में, ईश्वर तो केवल गहन आनंद में ही प्रकट होते हैं, तब जब हम इतने आनंद से प्रकाश से परिपूर्ण हो जाते हैं कि सारा अंधकार हमसे दूर चला जाता है। जब हम प्रेम से इतने भर जाते हैं कि हमारे भीतर कोई रिक्तता नहीं रहती, जब हम दैनिक जीवन के साधारण क्षणों के महत्व को अनुभव करने लगते हैं, जब हम एक-एक पल को पूर्णता से जीते हैं, पूरी तीव्रता और उत्साह के साथ जीते हैं, तभी ईश्वर उपलब्ध होते हैं और उनका अनुग्रह प्राप्त होता है अन्यथा नहीं, कभी नही।

इसीलिए आज मेरे आराध्य प्रभु से प्रार्थना है कि हमें इतनी शक्ति, सामर्थ्य और बुद्धि प्रदान करें, जिससे हमारा हृदय प्रेम से भरा रहा सके, हर कदम नृत्य कर सके और हर शब्द एक मधुर गीत बन जाए। हम अपने भीतर संतुष्ट रहें और परमात्मा के रंग में पूरी तरह से रंग जाएं। हम सब वर्तमान क्षण को सुंदर बनाने में जुट जाएं, इसे अधिक से अधिक उत्सवमय और आनंदपूर्ण बनाने का प्रयास करें, जीवन में हास्य और उल्लास भरें, जिससे हमारे आसपास के लोग भी प्रेरित हो सकें।

मेरी उनसे यह भी प्रार्थना है कि वह शुभ दिन शीघ्र ही आए जब इस धरती पर कहीं भी नफरत और युद्ध की कोई संभावना न रहे। हर ओर खुशियाँ और हँसी गूंजे, स्वाभाविक रूप से शांति स्थापित हो और हम सब मिलकर एक दूसरे के जीवन और अस्तित्व का उल्लासपूर्ण उत्सव मनाएं।

आप सब सदैव स्वस्थ रहें, प्रसन्नचित्त रहें, इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ स्नेहपूर्ण नमस्कार 🙏

श्री रामाय नमः। ॐ हं हनुमते नमः।

One Comment on “रविवारीय प्रार्थना – हृदय प्रेम से भरा रहे, हर कदम नृत्य करे और हर शब्द एक मधुर गीत बन जाए।

Leave a reply to 27c61fb22 Cancel reply