प्रार्थना

हमारे वेद बताते हैं कि सच्चिदानन्द ईश्वर तो आकार से रहित निराकार है। ईश्वर के असली रूप की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। कम से कम हम जैसे साधारण बुद्धि वाले मनुष्य तो नही कर सकते हैं।

इसलिए हम अपनी अपनी कल्पना और मान्यताओं के अनुसार उन्हें किसी साकार रूप में गढ़ते हैं, मानते हैं, पूजते हैं और अनुभव करते हैं। ये ठीक भी है। क्योंकि इसके सिवाय दूसरा कोई मार्ग ही नहीं है। उनके निराकार दिव्य स्वरूप की कल्पना तो बस कुछ अत्यंत सामर्थ्यवान ऋषि मुनि ही कर सकते हैं। हम नही।

इसीलिए प्रार्थना में हमे अपने ह्रदय में ही विद्यमान उस दैवीय सत्ता को जागृत कर परमतत्व के साथ जुड़ना होता है और उनकी दिव्य ऊर्जा का अनुभव करना होता है।

इसीलिए प्रार्थना में शायद हाथ नहीं, बल्कि हृदय फैलाने की आवश्यकता है। इसीलिए अपने व्यवहार में शांति, विनम्रता, सहजता और सहनशीलता बनाये रखना प्रार्थना है। प्रार्थना का मतलब सिर्फ लिखे गए शब्दों को दोहराना मात्र ही नही, बल्कि अपने विवेक पूर्वक शुभ कर्म और प्रयास पूरी जिम्मेदारी से करते रहना भी है।

जिसने यह संपूर्ण सृष्टि बनायी है, जो सभी सुखों के दाता हैं और मेरे आराध्य प्रभु से आज मेरी प्रार्थना है कि आपके शरीर को स्वस्थ, ह्रदय को शुद्ध, दिमाग को संतुलित कर दें और आपके चित्त को प्रसन्नता से भर दें तथा आपके जीवन और घर आंगन को जल्द ही आनंद, प्रेम और समृद्धि की प्रचुरता से भर दें। मंगल शुभकामनाएं 💐💐

Lord Hanuman Temple, New Delhi

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